रिश्ता

तेरी नज़र से रु-ब-रू मेरी नज़र का गम ना हो,
बिछड़ने पे भी मुस्कुराएँगे ऐसी कोई कसम ना हो !
तू मिल तो सही मेरा यार बन के,
ये दुनिया अपना रिश्ता बदल दे ऐसा बस सितम ना हो !!

पत्थर

पत्थर ने समा रखा है मोम अपने अंदर,
पिघलता है पर टूटता नहीं !
उसे चिंता है बेवफा को सेंक लग जाने की,
वरना वो जलने से डरता नहीं !!

पैबंद

वो बोतल में बंद बूंद सा था,
तो जैसे पगली लड़की ने सीने पे दरिया बना लिया हो !
अपनी अमीरी में उसकी ग़रीबी को जगह दे दी,
जैसे किसी ने मखमल पे सूत का पैबंद लगा दिया हो !!

अफवाह

तुम तो रुखसार पे हथेलिओं से हमदर्दी दे जाते हो,
और पीछे छोड़ जाते हो इक गले लगाने की चाह !
सोचो, लोगों में फैल जाती है अपने मिलने की अफवाह !!

खिजां

खुश्बू उड़ती रही इन दीवारों में,
जैसे तितली फड़फड़ा रही हो तेरे कान्धे पे !
घटा बरसती रही छत के नीचे,
जैसे अठखेलियां खेले बादल तेरी ज़ुलफ के नीचे !
चहचहाते रहे पंछी पर्दों के धागों पे,
जैसे तेरे चेहरे पे उग आया हो सूरज कोई नया !
रंगों से खेलती रही चादरें,
जैसे रंग उड़ेले हों मेहंदी निचोड़ के तेरे हाथों ने!


बहार आई थी उस वस्सल की रात,
और फिर उम्र भर मौसम-ए-खिजां रहा !!

दखल

मैं अक्सर रात से बात करता हूं !
हां, हर शायर की तरह, मैं भी !!
सितारे सुनते हैं, मगर बोलते नहीं !
चाँद देखता है, मगर दूर से !
कोई दरमियाँ नहीं मेरे और रात की अंधेरी खला में !


आज कल, तेरी नज़रों के एक तिलस्म का दखल मेरी गुफ्तगूं में !!

तीशनगी

कोई चाहता है सिर्फ़ तुम्हारा साथ,
किसी को काफ़ी नहीं पूरी की पूरी तुम !
समंदर उछल पड़ता है मुठ्ठी भर चांदनी से,
आसमान खामोश सा पूरा चांद पा के भी !!

कमी

मैं था के नहीं तुम्हारे साथ,
जब तुम्हें सहारों की ज़रूरत थी !
मैं शामिल था या अलहदा,
जब तुम्हें महफ़िलों की कमी थी !

तेरा उंस और मेरी उलफत, दूरियां कम और नज़दीकियां ओर भी कम !!

करवट

ख्वाब की तह में रखी हुई याद आधी रात,
करवट लेते हुए बिस्तर की सिलवट के साथ खुलती है !
एक हवा का झोंका खिड़की के घूंघट को उड़ा,
फलक का मुखड़ा दिखा जाता है !
रात के रुख़ पे टपक गया हो आंसू जैसे चांद से,
सावन का एक बादल बिखरे से काजल सा चांद के ओर !
सब झीलें सो रही हैं धरती के आँचल पे,
कोई नहीं जो आगोश में ले ले रोते आसमान को !


कोई भी नहीं होता आस पास जो गले लगा ले मुझे,
आधी रात जब करवट लेते वक़्त मालूम होता है की आंख भीगी है !!

पन्ना

लड़का गमगीन था ! लड़की जानती थी, मगर वो चली आई | उसके आंसू पोंछने का हक़ किसी ओर का था, और वो थी खुद्दार !
बस! ज़िंदगी ने कहानी का पन्ना पलट लिया !!


कितना मुश्किल था गले से लिपट जाना,
के आसां हो गया जां का हलक में आ जाना !

शाहकार

हर रंग की किस्मत नहीं होती शाहकार बन जाने की,
मुसव्विर रहता है कोशिश में, तस्वीर को शीशा करने की !
दरिया को नहीं चाह होती समंदर से एक हो जाने की,
वो बेचारा लगा है होड़ में, समंदर को मीठा करने की !!

डूबना

इक दरिया के किनारे किनारे चलती ज़िंदगी को,
समंदर की तलाश से ज़्यादा,
डर रहता है खाड़ी में बँट जाने का !

पानी छोटा बड़ा नहीं होता, बस गहरा होता है !
और काफ़ी होता है डूब जाना !
ये सीखे हुए पैर, मुकाम नहीं राहें ढूंढते हैं !!

ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੰਦ ਬੋਤਲੇ

ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੰਦ ਬੋਤਲੇ ਕਿਧਰੇ ਭੁੱਲ ਗਈ ਤੈਨੂ ਦੁਨੀਆ ਨੀ,
ਤੇਰਾ ਸਵਾਦ ਮੁਹੱਬਤਾਂ ਵਾਲਾ, ਰੁਲ ਗਿਓਂ ਵਿਚ ਅਮੀਰੀਆਂ ਨੀ !!

ਤੇਰਾ ਛਨ੍ਨਾ ਲੱਸੀ ਵਾਲਾ ਬਣ ਗਿਓਂ ਪੇਗ ਵਿਲਾਅਤੀ ਨੀ,
ਹਾਏ ਨੀ ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੋਤਲੇ, ਪੰਜ ਪਾਣੀਆਂ ਚ ਮਿਲ ਗਿਆ ਖਾਰਾ ਸਮਂਦਰਾ ਵਾਲਾ ਨੀ !
ਤੇਰੇ ਰੰਗ ਸੁਨਹਰੇ ਉਡ ਗਏ ਨੇ ਕਣਕਾਂ ਦੀਆਂ ਪੈਲੀਆਂ ਚੋਂ,
ਹਾਏ ਨੀ ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੋਤਲੇ, ਠਾਠਾਂ ਮਾਰਦਾ ਰੰਗ ਕਾਲਿਖਾਂ, ਭੁੱਕੀ ਦੀ ਸੁਆਹ ਵਾਲਾ ਨੀ !
ਤੇਰੇ ਜੱਟਾਂ ਦੀਆਂ ਸ਼ੌਕੀਨੀਆਂ ਰੁਲ ਗਿਆਂ ਵਿਚ ਪਰਦੇਸਾਂ ਨੀ,
ਹਾਏ ਨੀ ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੋਤਲੇ, ਰਖਦੇ ਨੇ ਖੁੰਡੇ-ਗੰਡਾਸੇ ਚਾਕਰਾਂ ਲਈ, ਚੁੱਕਲੀ ਰੋਡ 'ਸੇਲਫੀਆਂ' ਵਾਲੀ ਨੀ !
ਤੇਰੇ ਛੱਲੇ, ਵਂਝਲੀ ਹੰਡਾਂ ਲਿਆਂ ਉਮਰਾਂ ਪ੍ਰੀਤ ਵਾਲਿਆਂ ਨੀ,
ਹਾਏ ਨੀ ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੋਤਲੇ, ਹੁਣ 'ਸ੍ਮਾਰਟਫੋਨਾ' ਤੇ ਇਸ਼੍ਕ਼ ਹੁੰਦਾ ਏ ਜਿਸ੍ਮਾ ਵਾਲਾ ਨੀ !
ਤੇਰੀ ਮੋਟਰਾਂ ਤੇ ਹੁਣ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ ਓ ਦੁਧ-ਮਿਠਾ ਪਾਣੀ ਨੀ,
ਹਾਏ ਨੀ ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੋਤਲੇ, ਕਿਆਰੀਆਂ ਚ ਛਿਟੇਂ 'ਕੇਮੀਕਲਾਂ' ਵਾਲੇ, ਤੇ ਨਸ਼ੇ ਲੌਨ ਤਾਰੀਆਂ ਨੀ !
ਤੇਰੀ ਜੁੱਤੀ ਚ ਓ ਨੌਕ ਨੀ ਰੈਗੀ, ਹੁਣ ਅੱਡੀ 'ਗੂਚੀ' ਵਾਲੀ ਨੀ,
ਹਾਏ ਨੀ ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੋਤਲੇ, ਬਣ ਬੈਠੀਓਂ ਯਾਰ ਭਾਂਬੀਰੀ ਔਡੀ, ਜੀਪ ਤੇ ਬੁਲਟਾਂ ਦੇ ਪਿਛੇ ਨੀ !
ਤੇਰੇ ਮੇਲੇਆਂ ਚ ਹੁਣ ਦਿਲਾਂ ਦੇ ਮੇਲ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ,
ਹਾਏ ਨੀ ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੋਤਲੇ, ਹੁਣ ਬਾਜ਼ਾਰੀਂ ਵਪਾਰ ਹੁੰਦੇ, ਕੱਲੇ ਰਹਿ ਗਾਏ ਜਰਗ, ਛੱਪਾਰ ਤੇ ਰਾਇਪੁਰ ਨੀ !
ਭਠੀਆਂ ਚੋਂ ਹੁਣ ਗੁੜ ਨਹੀਂ ਨਿਕਲਦਾ ਤੇ ਕੱਚੀ ਕਢਣੀ ਭੁਲਾਤੀ ਨੀ,
ਹਾਏ ਨੀ ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੋਤਲੇ, ਤੂ ਰੈਗੀ ਵਿਸਰੀ, ਤੇਰੀ ਜਗਾਹ ਲੈ ਲੀ ਵਿਲਾਅਤੀ ਨੀ !

ਗਰੀਬਾਂ ਦੇ ਤਾਂ ਅਖਤਿਆਰ ਹੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ,
ਨਾਭੇ ਦਿਏ ਬੰਦ ਬੋਤਲੇ, ਤੂ ਰੁਲ ਗਿਓਂ ਵਿਚ ਅਮੀਰੀਆਂ ਨੀ !!

टीस

कोई भी नहीं है इस चार-दीवारी में,
जो सवाल करता हो !
खामोशियाँ फिर भी जवाब दे जाती हैं अब !
टीस, तन्हा, मगर चाह बंटने की !! 



ये कहानी बस इतनी सी !
बहरहाल कई कहानिओं की भूमिका है मेरे पास, मगर अंत नहीं !!

क़ैद

हज़ूम की जात नहीं होती,
बस मनसूबे होते हैं !
शख्स की पहचान नहीं होती,
बस ख्वाब होते हैं !

रेहाई की तलाश में सब, अपनी ही क़ैद से !!

चिठ्ठीओं से नाता

वो अक्सर आ के पूछती है सुनहरी धूप में,
बताओ ज़िंदगी कैसी चल रही है !
मुझे अक्सर एहसास होता है बूंदों की खड़खड़ाहट में,
ज़िंदगी वैसी की वैसी चल रही है !

लोगो से नाते टूट के चिठ्ठीओं से नाते जुड़ गये हैं, इसके अलावा कुछ भी तो नहीं बदला !!

living between the lines

"जो चाहिए वो मिलता नहीं, जो नहीं चाहिए वो मिल जाता है! बाकी जो बचता है वो ज़िंदगी है, प्रेम और रंजिश के महीन धागे में पिरोई हुई"
उसकी ज़िंदगी एक पन्ने पे करीने से इन्हीं लाइनों के बीच टॅंगी हुई है! जिन लाइनों से वो बचता रहा है उन्हीं लाइनों के साए में!
बहुत से तज़ुर्बात के बाद उसे ये समझ आई थी के प्रेम शब्दों में परिभाषित नहीं हो सकता और शायद इसी लिए उसने अपने लिए वो जगह चुनी यहां शब्द नहीं होते| मगर चाहना से बड़ी होती है हक़ीक़त | उन शब्दों से ज़्यादा अर्थ-पूरण और उसकी ज़िंदगी से ज़्यादा निरार्थक कुछ भी नहीं था|

मेरे अंदर का कवि उस दिन मर गया जिस दिन "reading between the lines" से "living between the lines" का सफ़र मुकम्मल हो गया| मगर कभी कभी ज़िंदगी मचल भी उठती है, लकीरों को तोड़…

ज़िंदा रहना एक मकसद होना है बस, और ज़िंदगी एक एहसास!