दखल

मैं अक्सर रात से बात करता हूं !
हां, हर शायर की तरह, मैं भी !!
सितारे सुनते हैं, मगर बोलते नहीं !
चाँद देखता है, मगर दूर से !
कोई दरमियाँ नहीं मेरे और रात की अंधेरी खला में !


आज कल, तेरी नज़रों के एक तिलस्म का दखल मेरी गुफ्तगूं में !!

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