इक दरिया के किनारे किनारे चलती ज़िंदगी को,
समंदर की तलाश से ज़्यादा,
डर रहता है खाड़ी में बँट जाने का !
पानी छोटा बड़ा नहीं होता, बस गहरा होता है !
और काफ़ी होता है डूब जाना !
ये सीखे हुए पैर, मुकाम नहीं राहें ढूंढते हैं !!
समंदर की तलाश से ज़्यादा,
डर रहता है खाड़ी में बँट जाने का !
पानी छोटा बड़ा नहीं होता, बस गहरा होता है !
और काफ़ी होता है डूब जाना !
ये सीखे हुए पैर, मुकाम नहीं राहें ढूंढते हैं !!
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