पैरों के तले

उमरों के पन्ने रखे रहते हैं दरखतों पे,
पतझड़े हिसाब लगातीं पत्ता पत्ता !
हवाएं उड़ा ले जाती हैं कुछ किस्से,
जिनके ठूंठ में भरे रहेंगे सब राज़ !
कुछ भीग के मिट्टी बन गये होंगे,
बरसात में और कुछ स्याही !


बाकी सब, तुम्हारे पैरों के तले खड खड़ाहट !!

किनारे

लहरों सी आती जाती सांसों में बुलबुलों सी मोहब्बतें,
और किनारे पे चट्टान से खड़े शिकवे !
जाने कितने ही सीप यादों के भर लिए मैने अपनी जेबों में,
और मुठ्ठिओं में रेत भर ली किस्मतों की !

ओ पीची, ज़िंदगी कैसी है !!

सब वैसे

मेरे यहां,
तुम्हारी कुछ झपकियां रखी हुई हैं,
और कुछ गीली मिट्टी की खुश्बू !
इक किताब है जिसके आधे पन्ने पुराने और आधे अनछूहे हैं !
शीशे पे तुम्हारे गीले बालों के कुछ छींटें भी बचे हैं !
तकिये वाली अपनी कुछ लड़ाई भी बाकी है !


मैने संभाल के रखा है सब वैसे ही जैसा तुम छोड़ के गयी थी !
बस सिवाए अपने !!