किनारे

लहरों सी आती जाती सांसों में बुलबुलों सी मोहब्बतें,
और किनारे पे चट्टान से खड़े शिकवे !
जाने कितने ही सीप यादों के भर लिए मैने अपनी जेबों में,
और मुठ्ठिओं में रेत भर ली किस्मतों की !

ओ पीची, ज़िंदगी कैसी है !!

0 comments: