अंजाम

यारा, रूह को भी चाहिए जिस्म का सहारा,
अकेली कब तक जीती रहेगी !
वरना ज़िंदगी की फ़ितरत है गुज़रना, गुज़रती रहेगी !

मेरी दुआ में मगर तुम्हारे खुश रहने वाला हिस्सा,
हमेशा बरकरार रहेगा !
रूह बिना जिस्म का अंजाम है जलना, जलता रहेगा !!

कमी


एयरपोर्ट पे मेरे साथ खड़ी लड़की उसी जोड़े को देख रही थी जिसे मैं भी काफ़ी देर से ताक रही थी| हम दोनो ही जा रहे थे और सोच रहे थे के कोई नहीं जो विदाई देने आया हो| लगा के वो बोल रही हो अपने गुम हुए प्रिय को के तुम भी आओ और चूम लो माथे पे सामने वाले लड़के की तरह; और मैं बस रुक जाऊंगी ज़िंदगी भर तुम्हारे पास| ये सोच वो कितना टूटी होगी अंदर से और शायद ज़िंदगी भर टूटती रहेगी थोड़ा थोड़ा ऐसे ही मौकों पे|

असमंजस उसे बस इस बात का था के क्या उसके प्यार में कुछ कमी थी जो वो नहीं मिला उसे या उसका प्यार इतना गहरा था के तड़प ज़िंदगी भर रही| गुलदस्ता बनाने के लिए दूसरे फूल भी तो तोड़े जा सकते हैं, एक काँटों वाले गुलाब ही तो नहीं होते गुलदस्ते के फूल!

मैं अभागी इस बात से गमगीन के मेरे पास अपनी कोई कहानी नहीं| मगर, किसी के ना होने से या कुछ ना होने से भी ज़िंदगी कहाँ रुकती है! फिलहाल, ज़िंदगी हलक के नीचे उतरी बैठी है किसी कोने में ज़हन के! जी लो!!

होना

पहले उसे लगता था के किसी के होने से सब कुछ है मगर अब महसूस करता है के किसी के होने से कुछ होने का कोई सरोकार नहीं होता| कभी कुछ ना होने से भी किसी का होना पूरा हो जाता है|

बच्चे सही रहते हैं - एक छोटी सी "क़िस्सी" के सौदे बदले सब कुछ पूरा हो जाता है| प्रेम भी एक बच्चे की तरह ही है जिसके लिए हम सब पूरा करते रहते हैं; मगर वो हमेशा नये खिलोनो के पीछे भागता रहता है और बिठा लेता है हाथ पकड़ अपने पास जो भी अच्छा लगे!
वैसे ही जैसे किसी का हाथ पकड़ लो तो प्रेम नहीं हो जाता, किसी का हाथ छोड़ देने से प्रेम कम भी नहीं हो जाता| हां, फ़ासले बढ़ जाएं तो उलझनें बढ़ ही जाती हैं| कशमकश और उलझन में ख़ासी दूरी नहीं होती; एक ही सिक्के के दो पहलू जैसे – पास पास मगर बिल्कुल अलग| फिलहाल, कशमकश है प्यार के हो जाने पर!

किसी से प्यार हो जाना और किसी से प्यार करना दो बहुत अलग बातें हैं मगर इन दोनो से ही मुख्तलिफ होता है किसी का प्यार पाना| अहम बात यह है के ये सबसे मुश्किल भी है| दावा तो नहीं पर यकीन है के उसके मन में प्यार था ज़रूर, बात अलग है के वो प्यार पाना किसी के नसीब में नहीं था| किसी को नहीं मिला या वो प्यार किसी ओर को मिला या जिसको मिला उसको कुछ ओर प्यार मिला, सब किसी संजीदा रात का अंधेरे का हिस्सा हैं!


ज़िंदगी एक-तरफ़ा मुक़ाबले का छोटा सा हिस्सा है जिसमे जीत पहेले से तै है और हारने वाला मैं! हमेशा!!

हमेशा

तुम आहिस्ते से करीब आते आते मेरे वजूद में रच-बस जाओ,
इस तरह की कुछ बड़ी चाह नहीं थी !
उम्मीद भर थी बस इतनी तस्सली की,
के तुम मेरे पास हो और हमेशा रहोगे !!

ढूँढो तुम भी

एक मोहब्बत देखी जो कहती थी,
काश तुम मेरी ज़िंदगी में आए होते !
एक ओर मोहब्बत कहती है,
काश तुम मेरी ज़िंदगी में ना आए होते !

मैं फँसी हूं बीच में कहीं, खुद को टटोलती हुई !
तुम भी आओ और ढूँढो मुझे !!

शनाखत

मैने बन्टोरी थी स्याही खैरात में,
वो लफ्ज़ संजोता रहा, लुटाता रहा !
मेरे पास थे रंग सारे,
वो ज़िंदगी की तस्वीर बनाता रहा, मिटाता रहा !

मेरी निगाहें आईना थीं,
वो खुद को संवारता रहा, निखारता रहा !
मैं प्रस्तिश में सर झुकाए बैठा रह गया,
वो सजदे सजाता रहा, उठाता रहा !

वफ़ा की शनाखत मुझसे है,
वो बेवफाओं को अपनाता रहा, आज़माता रहा !!

पतझड़

आओ बेवजह चलें...जिस रास्ते पे सूखी सांसें गिरती हैं किनारे के दरखतों से...
पतझड़ शरमा जाए इस बार अक्खीओं की बरसात से...

इतफ़ाकन

इतफाक जिस रोज़ इक लंबा सफ़र तै कर,
मेरी गोद में आ गिरा था,
उस रोज़ तुम्हारी उंगलियाँ खेल रहीं थी,
मेरी ज़ुल्फों की उलझन से !

इतफ़ाकन उस दिन पूरा हुआ वो,
जो अधूरा था बचपन से !
इतफ़ाकन तब दिल भी कमज़ोर था,
सहारा मिला तेरी धड़कन से !

इतफ़ाकन तेरा सीना भी झुका,
मेरे आँसुओं के वज़न से !!

बददुआ

उसने बददुआ दे दी था, बिछड़ते वक़्त,
के तुम्हे ना मिलेगा चैन कहीं, कितना भी ढूंढना !
अपने एक दिन के आँसुओं के बदले !

अब मुझे जगी रातें फ़िकरे कसती हैं,
काश तुमने भी बददुआ दी होती उसे, दुआ की जगह !


बता यारा, घाटे का सौदा किसका रहा?

परिभाषा

तुम भी आना वहां जहां कुछ ओर ना होगा,
इक प्रेम की परिभाषा के सिवा !
हम रोज़ परिभाषाएं बदलते रहेंगे,
यारा,  पर प्रेम अमर रहेगा !!

मैं चला

कहानी लिखने को चला था,
मैं इक दास्तान बना गया !
इक किरदार नक्काश रहा था,
मैं इक ज़िंदगी निभा गया !

कुद्रतन उठा नींद से तो,
मैं इक ख्वाब जगा गया !
खुली आँखों से ख्वाब देखा तो,
मैं सबको आईना दिखा गया !

मंज़िल ढ़ूंढने निकला था,
मैं सब रास्ते भुला गया !
मैं चला था अकेले,
पीछे इक कारवां चला गया !

मैं तन्हाई में रोया,
गम की महफिलें सज़ा गया !
अपने काँधे से बोझ उतारा तो,
चार का बोझ बढ़ा गया !


मुझे छू के गया था बस,
वो मुझे मोहब्बत सीखा गया !!

सरलता

इक दिन मुझमे से ही आवाज़ आई थी के मोहब्बत को मान लेना ही मोहब्बत है | अब मैने ये भी महसूस किया है के किसी से भरोसा उठ जाने का मतलब उस में से विश्वास उठ जाना नहीं होता |
इतना कहना काफ़ी होगा के मोहब्बत होती सरल है पर निभती बड़ी कठिन है |

बदक़िस्मती

सुना है के लोग अकेले आते हैं, अकेले जाते हैं इस दुनिया से !
इक बदक़िस्मती, यारा, देखो,
के कुछ जीते भी अकेले हैं !!

के वो खत धुल गया था पिछली बारिश में,
जिसमे तुम्हारा साथ था !!

मुआमले

कभी ऐसा भी होगा जब हौड़ ना होगी खुद को छुपाने की,
तुम अपने सारे मुआमले निपटा लेना मुझसे तब,
और सब शिकवे भुलाते रहना !

अभी मुझे थोड़ी ओर मोहलत दे दो खुद को बचाने की,
फिर मैं बना रहूँगा नाचते हुए बंदर की तरह ,
तुम चाबी घूमाते रहना !!

अभिमान

एक लकड़हारा था, बहुत ग़रीब, बेहद बदसूरत और बेहिसाब खुशहाल !

पेट भरने के लिए रोज़ जॅंगल में लकड़ियाँ काटता था, आत्मा की प्यास बुझाने के लिए बंसी बजाता था और पंछीओं के साथ गीत गाता था | धन के नाम पे एक कुल्हाड़ी और एक बंसी के सिवा कुछ ना था, पर दौलत के नाम पे दुनिया भर का संतोष था |

एक दिन लकड़हारा जॅंगल में एक परी को देखता है| उसका मन किया के इतनी खूबसूरत परी को बाहों में भर ले या कहीं भगा के ले जाए इस जॅंगल से भी कहीं दूर | वो कदम बढ़ाता है, पर ठिठक जाता है | वो परी एक पिंजरे में क़ैद होती है, एक बेहद सुंदर मोर के पिंजरे में |

लकड़हारा परी से जा के पूछता है के वो पिंजरे में क्यों बंद है | परी बताती है, “मोर ने मुझे एक दानव से खरीदा था और अब मैं उसकी जागीर हूँ | मोर मुझे आज़ाद तो कर देगा पर तुम्हे उसे मेरे बदले कुछ बेशक़ीमती देना होगा |” लकड़हारा बोलता है, “मेरे पास तो ऐसा कुछ नहीं है, पर ये कुल्हाड़ी और ये बंसी है, मेरी सारी धन-दौलत यही है |” मोर बोलता है किसी की पूरी की पूरी धन-दौलत से बेशक़ीमती और क्या हो सकता है, मैं तुम्हारी दौलत ले लूँगा परी के बदले |

परी पिंजरे से बाहर आती है तो लकड़हारा अपने मन की बात परी को बोलता है तो परी हंस देती है | बोलती है, "मैं परी हूँ और तुम लकड़हारे !!" खुद की पहचान तो बता ही देती है परी, साथ साथ उसकी भी पहचान बता देती है | और ये बोल के वो उड़ जाती है | अकेली !

उस दिन के बाद फिर कभी जॅंगल में बंसी नहीं बजी |
बस, कहानी ख़तम!

परी और लकड़हरे का आगे कुछ नहीं होता |
पर मेरा अनुमान है के ना वो लकड़हारा था ना वो परी थी, ना वो ग़रीब था ना वो किसी दूसरी दुनिया की, ना वो बदसूरत था ना वो खूबसूरत |

वो दोनो अभिमान थे अपने अपने होने के !!

दूरी

आज की रात बड़ी दूर चलेगी !
नींद लौट जाएगी दबे पावं, ख़्वाबों को माचिस की डिब्बी में छुपा |
मैं ज़ाया करता रहूंगा सब ख्वाब, सिगरेट के धुएं के छल्ले बना ||

आज की रात बड़ी दूर चलेगी !
मौत दे जाएगी सबूत अपनी आमद का, उम्र को पैमाने में छुपा |
ज़िंदगी टटोलती रहेगी सबब अपने होने का, शराब को सिरहाना बना ||

यारा, आज की रात बड़ी दूर चलेगी !

देरी

फूँकते रहना प्रेम की भट्टी में, इंतज़ार की तपश,
प्रेमी देर सवेर ज़रूर आएगा !
आज सितारों से ही माप लेना, तन्हाई की लंबाई,
यारा, चाँद आज कुछ देरी से आएगा !!

जिल्द

सुनहरे रंग की जिल्द में ढंके पड़े,
जंग लगे पन्नों में,
मुठियाँ भींचते शब्द रहते हैं !
उन्हे जिल्द में छुपा रहने दो !

शब्दों का असल काला रंग किसी को समझ नहीं लगता,
सुनहरी जिल्द सबको भाती है !!

जन्म

इन आँसुओं का क्या करूँ !

अंजुलि में भर लूं,
और पी जाऊं एक ज़हर का प्याला समझ के !
या मोती बना पिरो लूं धागे में,
और चढ़ जाऊं फाँसी उसपे एक नयाब तोहफा समझ के !
 

बता, इन आँसुओं का क्या करूँ !


यारा, मरना पड़ता है पहेले, नया जन्म लेने के लिए,
के बेचारगी एक बद्दुआ है, किसी अपने की !!

नींद

मैं रह गया करता लिखा-पड़ी,
वो बेच गया सब कुछ उधारी की मोहर लगा के !
के यादों की लेनदारी बड़ी भारी है,
वो सूद में ख्वाब ले गया, मैं लाया था नींद कमा के !

यारा, इस हाथ-तंगी में लकीरें भी तो सिमट गयी हैं,
के बेचारगी एक बद्दुआ है, किसी अपने की !!

पहाड़ की सर्दी



बर्फ के समंदर में कुछ चट्टानें झाँकतीं हैं  !
मुझे लगा कोरे काग़ज़ों पे छीटें पड़े हों,
कुछ धूल मिट्टी के यूं ही !

उसने छुपा लिए आंसू अपनी सर्द सासों में !
मुझे लगा के ग्लास में नशा कुछ कम हो गया हो,
पिघली बर्फ से यूं ही !

पर्दे

पर्दों के पीछे अतीत के दरीचों में,
एक गुल्दान रख के गयी थी तुम !
उसके फूल सब मुरझा गये हैं,
पर अब भी बाकी हैं कुछ कांटें !!
 

फूल अब डायरी में सियाहीओं से लड़ते हैं,
और कांटे बेताब रहते हैं ख़रोंचने को !
वक़्त ने मरहम लगा के छुपा दिया उपर से,
पर नीचे बाकी हैं सब झरीटें !!


पर्दों को अपनी जगह रहने दो,
यारा, बाहर यादों का घना अंधेरा है, अंदर आ जाएगा !!

छननी

तुमने बुन लिए हैं नये रिश्ते,
मैं अभी तलक सिल रहा हूं पुरानी क़तरनें !
सितारों ने भर ली है कटोरी आज फिर चाँदनी से,
और छीन लिया है चाँद मेरी आखों से !
तुम अपनी आखों में प्रेम मत रखना,
रखना बस इक पहचान नये रिश्ते की,
और बना लेना मेरी कतरनों को अपनी छननी !!
देर से ही सही, चाँद आएगा ज़रूर !!

प्र्यतन

प्रेम एक मंझा हुआ खिलाड़ी है, आज फिर से पैंतरा चल गया और मेरी मृगतृष्णा अब भी वैसे ही है, इसी लिए तो हाथ में फिर से कांच का ग्लास आ गया |
बाहर धूम धड़ाके की आवाज़ें आ रही हैं और लोग अपनी बदी जलाने का प्र्यतन कर रहे हैं |
मैं अपनी नेकी ढूंड रहा हूं, उसी पहेले और आख़िरी प्रेम-पत्र में…
प्र्यतन करना अच्छी बात है |

हिमाकत

समंदर को ज़रा पलक झपकने तो दो,
मैं मीठी नदीओं को खारी लहरों से निकाल लूंगा !
अभी तो एक रंग-ए-मंज़र देखा है आपने,
ज़रा हमें जानिए तो सही, मैं आपकी रूहों को अपना बना लूंगा !

प्रेम पत्र

दिल प्रेम-पत्र को किराए का मकान बना रहता है,
उसी पुरानी संदूकची में, जिसका ताला गुम हो गया था !
हर शाम यादें मकान-मालिक की हक़ारत नाक पे ले,
मेरा दरवाज़ा खटखटाती हैं !
मैं रोज़ पायल की एक कढ़ी बतौर किराया गिरवी रख देती हूँ !
रोज़ दो आहें बतौर सूद भी ले जाती हैं, यादें ! ज़बरदस्ती !

काश! के उस संदूकची का ताला नहीं बलकि चाबी गुम हो जाती,
या वो आख़िरी नहीं पहला प्रेम-पत्र होता !!

नया इज़हार

कितना आसां होता है किसी का किसी को ठुकरा देना,
नाहक ही वो रोज़ लड़ता है नये इज़हार से !
के मेरा हक़ सिर्फ़ अपने जुनून पे है, सुकून पे नहीं,
सुकून मिलेगा जब तो मुक़द्दर के अख्तियार से !!

आवारगी

"रुक जा, यार" बस इतनी सी दरखास्त कर पाया था तब !
अब भटकता रहता है दिल,
मंज़िलों और राहों में फरक जाने बिना !
आवारगी बड़ी शानदार चीज़ है !!

प्यास

सोचता हूं के आग को प्यास लग जाए तो,
कौन सा पानी अपनी सिफ्त बदल लेता है !
बात अलग है के पानी प्यास नहीं आग के वजूद को मिटा देता है !
मगर फिर प्यास भी कौन सा किसी को पूछ के लगती है !

कांच के इक ग्लास में रोज़ इकठी करता हूं,
1-3 भाग में आग और पानी,
और बुझा लेता हूं प्यास जो लगी नहीं थी,
लगाई थी, किसी आग के वजूद को मिटाने की खातिर !!

हत्या

चुप्पी की धार से तीखा उपेक्षा का खंजर,
भोंक दिया था मासूम सी ज़िद्द के सीने में !
और निकल गयी थी सारी नफ़रत छींटों में
मोहब्बत के लाल रंगों में रंगी !
उसी नफ़रत सने खंजर से आए दिन मैं करता रहता हूं,
मोहब्बत का खून जन्म लेने से पहेले ही !!

इक कुड़ी जिसदा नाम मोहब्बत है गुम है...
शिव को तो मिली नहीं और मैं जन्म लेने नहीं देता...

"सीरियल किल्लर" होना भी शायद ज़रूरी था...

सुनहरा लिफ़ाफ़ा

कभी भी मोहब्बत में रंगे दो अल्लहड़ों को देखता है तो झल्ला जाता है !
दिल का बचपना जाता ही नहीं और,
कभी कभी तैश भी नादान हो जाता है !!

मोहब्बत को सुनहरे लिफाफे में डाल के उसने शगुन में दे दिया था !
प्रेम कम या ज़्यादा नहीं होता वक़्त के साथ,
या तो परवान चढ़ जाता है या कुर्बान हो जाता है !!

रात आज़माइश की

रात की पगडंडीओं पे इक मुसाफिर आधा अधूरा सफ़र कर थक सो गया था| उसे इक ख्वाब नींद से जगा देता है उसके कान में फूस-फूसा के कुछ| अलसाई नज़रों से वो अपने ब्लैक-ऐंड-वाइट ख्वाबों में वही रंग भरने की कोशिश करता है जो उसकी ज़िंदगी की कैनवस पे नहीं हैं| रंगों से उलझते वो कैनवस के धागों से भी उलझ लेता है ये सोच के कुछ उलझेगा तभी कुछ सुलझेगा| कई रंगों से तो उसने खुद को भी बुना था एक बार, पर जाने क्यों कुछ अधूरा सा रह गया था उन बुनतरों में, जिसकी कमी उसे पता नहीं था कहां से पूरी करे| और उसे पता भी नहीं चला कब उसके अस्तित्व से इक धागा खिंचा और पूरा आशियाना जैसे उधड़ता चला गया| उसे याद था बस यह के के इक चिंगारी जली थी और पीछे रह गई थी राख उन्हीं धागों की और उनमे से आ रही थी खुश्बू वही सब रंगों की पर जो अब आंसू बन रुखसारों पे सूख जाते हैं| उसे महसूस होता है के जैसे किस्मतों ने उसे इक बार फिर से वही इम्तिहान दे दिया जिसमे वो पिछले साल ही फेल हुआ था; और इस बार भी उसे उस इम्तिहान का सिल्लेबस पता नहीं| इतने में रोशनी के साथ उजागर हुए कुछ सच उसके ख्वाब को धुँधला के चले जाते हैं|

प्रेम कुछ नहीं होता बस छलावा है जो ठग के चला जाता है और वापिस आता है जब आप फिर से अमीर हो जाओ किसी की मोहब्बत में बाज़ी लगा के| मोहब्बत ज़ुआ है और प्रेम मुझसे बेहतर ज़ुआरी – यह समझ आने में अभी वक़्त है!

Remember

Remember remember remember

the burning petrol, the blazing Ballantine's
the unbearable sun, the gushing wind
the shivering fit, the smelly sweat
the blood, the dust
the sand, the stone
the chilli in food, the dirt in eye
the camera, the canvas
the fire, the fog
the dhaba, the palace
the lost path, the travelers
the racers, the flock
the highway, our way

just remember to make it happen one more time. One more time, for the last time.
Remember.

biodata

जीवन में professional experience बहुत हो चला था,
सो biodata बनाने की इक कोशिश भर सी करी थी !
दो शब्द लिखते ही bio कहीं स्याही में छुप गया,
और कलम जैसे किसी कहानी से दौड़ लगा गयी हो !
बदनसीब कोशिश की जद्द-ओ-जहद की भी कोई हद है,
के कहानी अब भी अधूरी है और biodata निरार्थक !

मुझे काम की नहीं शायद अपनी तलाश है !!

एक बूंद कहानी

बस एक बूंद कहानी है !
जो सांसें लेना मुश्किल कर दे, ऐसी कोई याद है,
या इक खत में लिपटी स्याहीओं में कोई निशानी है !!
बस एक बूंद कहानी है !
गयी रात के खवाबों का सबब है,
या खुली आंखों में बची हुई ज़िंदगानी है !!
बस एक बूंद कहानी है !
पता नहीं किसी रुखसार से बहका हुआ आंसू है,
या फिर सावन की पहली बारिश का पानी है !!
बस एक बूंद कहानी है !

छेद

दोनो हाथों से भर के
अंजुली में प्यार रखा था !
टपक गया है अब सारा,
मेरी लकीरों में छेद थे बहुत !!

नमी

आज खुद की आखों पे वही हाथ नम से हैं,
जो कभी तेरे रुखसार पे रख के भीग गये थे !!

ज़रूरत

चलो तोड़ देते हैं उन आईनों को
जिनमे अक्स देखते हैं हम एक दूसरे का !
के जब तन्हाई का सबब बनेगा,
तो याद आएगी उस ज़माने की,
जब आईनों की ज़रूरत नही पड़ा करती थी !!


तब जब चेहरे ही नहीं, रूहें मिल जाती थी आखों में ही !!

बेमेल रिश्ते


मसलक तो बनाए ही गये थे सियासत के लिए,
यहाँ मोहब्बत भी होती है तो मतलब के लिए !
सूखे हुए पत्तों को करार मिलता है ज़मीन ही से मिल के,
ये बेमेल दोस्तियाँ होती ही हैं किसी मक़सद के लिए !!

थोड़े तेरे थोड़े मेरे


ज़फ़ा हो या वफ़ा, पर आंसू हों !
वफ़ा में, कुछ तेरे हों !!
ज़फ़ा में, कुछ मेरे हों !!

हिजर हो या वस्सल हो, पर आंसू हों !
वस्सल पे, बस तेरे हों !!
हिजर पे, बस मेरे हों !!

एहसान

अभी तलक सोच रहा हूं,
मैं एहसानमंद हूं तो किस चीज़ के लिए !
ये ज़िंदगी भर गुज़र गयी,
कोई क़र्ज़ उतारने के लिए !!

अल्फ़ाज़ बटोरता रहा हूं ता उमर,
किस तारूफ़ किस महफ़िल के लिए !
यूं यहाँ पे बने हैं सभी अपने,
मैं तरस गया हूं किसी का माथा चूमने के लिए !!

साँसें

कभी वो मुकाम भी आएगा,
जहाँ अपने ही दर्द को पराया कर दिया हो !
ऐसा हो जैसे तुम ने ग़ज़ल तो लिखी हो,
पर पन्ना फाड़ दिया हो !!

उस पन्ने पे कुछ साँसें हैं मेरी,
ठीक लगे तो तकिये के नीचे रख लेना !
मेरा आँचल भीगेगा तो यूँ लगेगा,
पल भर ही सही तुमने जैसे याद किया हो !!

एकांगी

तुम मुझे ले चलो
जहां लम्हों की परिभाषा ना हो !
जहां 'हम क्यों हैं'
इस सवाल के जवाब की जिज्ञासा ना हो !
हो तो बस तुम्हारा ये सोचना
के मैं अब पूरा हूं और मुझमे
खुद ही की ना रहने की निराशा ना हो !!

जहां हम दोनो एक चट्टान से हों
जिसे अभी तराशा ना हो !!

झलक

बस इक झलक ही मिल पाती है,
यूं कसक सी रहती है जी भर देख लेने की हर बार!
चल ऐसा करते हैं,
तू पलकें ना झुकाना और मैं ना चुराऊंगा निगाहें अब की बार!!

बदलाव

प्रेम कब बदलता है,
बस गुम हो जाता है, गर चाहिए तो बस ढूंढना भर है !!
प्रेम स्थिर, अटल, अचल, रहता है,
और वो ताना कसती है के तुम आज भी वैसे के वैसे ही हो !!

बहाना

तुम आओ तो गिला दूर कर देंगे !
तुम ना आओ तो गिला तुम्हारे आने तक बचा कर रख लेंगे !

सच्च कहती है दीवानी के
मोहब्बत में कोई शिकवा नहीं होता !
बस बहाना भर होता है !!

आख़िरी मुलाकात

तुमने आँखों ही में कह दिया था,
यूँ एक टक मत देखा करो अच्छा नहीं लगता !
जो छाप पड़ी थी उसे मिटाने की कोशिश भर तो थी,
पर जो भी मिटाया वो ओर गहरा होता गया !!
निगाहों की पहली मुलाकात थी, वास्ता खुद-ब-खुद होता गया !!

आज तुमने भी निगाहें नहीं चुराईं,
के कोई तस्सवुर हमारे बीच हो जैसे !
चलो, अब की कुछ यूं करते हैं,
इक धागे में दो मोती बन के बँध जाते हैं !
कही दूर जाएंगे भी तो घूम के फिर मिल जाएंगे !!

या फिर सजा लेते हैं मोती पलकों तले,
तस्सवुर तो भीग जाएगा पर शायद घाव सिल जाएंगे !!

बंद कमरे

पता नहीं हंसना क्यों इतना आसान होता है दुनिया के सामने, मगर रोने के लिए बंद कमरे ढूँढने पड़ते हैं !
और पता नहीं नफ़रतों के सिलसिले खुले आसमान तले दम भरते हैं, मगर प्रेम बंद कमरों में जताया जाता है !!
शायद बंद कमरों में आँसुओं और प्रेम में भी अंतर नहीं रहता...

दोष

मानता हूं तेरा प्यार भी अपनी जगह सही था
पर बता! उस पायल का क्या दोष था?

ਮੈਂ ‘ਸ਼ਿਵ’ ਬਣ ਟੁਰ ਚੱਲੇਆ

ਉਲਫਤ ਦੇ ਅਥਰੂ ਲੈ,
ਮੈਂ ਸਿੰਝਿਆ ਏ ਦਿਲ ਦਾ ਵੱਟ !
ਨੀਂਦਾਂ ਦੇ ਧਾਗੇ ਲੈ,
ਮੈਂ ਕੱਤੇ ਨੇ ਪ੍ਰੇਮ ਦੇ ਫੱਟ !
ਮੇਰਾ ਮਰਜ਼ ਬੁਲਾਵੇ ਤੇ,
ਮੈਂ ‘ਸ਼ਿਵ’ ਬਣ ਟੁਰ ਚੱਲੇਆ !
ਤੁੰ ਲਾਵਾਂ ਲੈ ਲਈਆਂ,
ਮੈਨੂ ਯਾਰ ਮੇਰੇ ਘਲੇਆ !!

ਇਲਮਾ ਦੀ ਬੁਟ੍ਟੀ ਨਾਲ,
ਨਾ ਬਣੇਆ ਕੋਈ ਫਾਇਦਾ !
ਇਕ ਅਲਿਫ ਦੇ ਅਕਸ਼ਰ ਨਾਲ,
ਹੈ ਭਰਿਆ ਮੇਰਾ ਕੈਦਾ !
ਮੇਰਾ ਮਰਜ਼ ਬੁਲਾਵੇ ਤੇ,
ਮੈਂ ‘ਸ਼ਿਵ’ ਬਣ ਟੁਰ ਚੱਲੇਆ !
ਤੁੰ ਲਾਵਾਂ ਲੈ ਲਈਆਂ,
ਮੈਨੂ ਯਾਰ ਮੇਰੇ ਘਲੇਆ !!

ਤਾਰੇਆਂ ਦੇ ਮੁਹੱਲੇ ਵਿਚ,
ਚੰਨ ਸੱਧਰਾਂ ਦੇ ਫ਼ਰਜ਼ ਭਰੇ !
ਅੱਗ ਲੱਗ ਜਾਏ ਪਾਣੀਆਂ ਵਿਚ,
ਜਦ ਚਾਨਣੀ ਕਲੌਲ ਕਰੇ !
ਮੇਰਾ ਮਰਜ਼ ਬੁਲਾਵੇ ਤੇ,
ਮੈਂ ‘ਸ਼ਿਵ’ ਬਣ ਟੁਰ ਚੱਲੇਆ !
ਤੁੰ ਲਾਵਾਂ ਲੈ ਲਈਆਂ,
ਮੈਨੂ ਯਾਰ ਮੇਰੇ ਘਲੇਆ !!

साहिल

There was always something left to move onto...


यादों की परछती अभी ढही नहीं,
पर ढीली शहतीर चर-मरा जाती है नयी हसरतों में!
पन्नो के सिरों से कट जाती हैं उंगलियां,
यूं लाल निशाँ ही रूह डालते हैं स्याह शब्दों में !
बह जाती है आखों तले शाम ढलते ढलते
और वो पन्ना सो जाता है सुबह के इंतज़ारों में !

ओर कुछ नहीं मिलता !
इंतज़ार की हद नहीं होती बस साहिल होते हैं
जहां से टकरा लम्हे मुड़ आते हैं साधारण सी ज़िंदगी में!!

इंतज़ार

कुछ ले लिए थे जो उधार
किशतों में चुकाता रहता हूं वो लम्हे !
सूद तो निभ जाता है,
असल में बाकी हैं सब लम्हे !

जिए हैं बार बार मैने तन्हाई में
वस्सल की रात के वो कुछ लम्हे !
और ये भी सोचा है के शायद
वो रात ही थी कुछ लम्हे !

कसम से, मैने गिने हैं सितारे सभी कहकशां के,
कहीं ज़्यादा हैं उनसे भी
मेरे इंतज़ारों के लम्हे !

हवा का रुख़

कितनी शब जला हूं मैं आदतन
ज़फ़ा की मज़ार पे बेसबब मगर !
पत्थर पे निशां ओर कितना गहरा होगा
हवा का रुख़ तै करता है दिए की उमर !!

हिस्सा

नमक होता है समंदर में जैसे
तुम ज़िंदगी का हिस्सा बन जाओ इस तरह !
ढाल दो मुझे अपनी खुश्बू में ऐसे
पहली बारिश में जैसे रेत बन जाए गीली मिट्टी की तरह !
कुछ नहीं है इसके बाद
मत जाओ और थम जाओ इस लम्हे की तरह !!

वादा खिलाफी

इशक पे लिखा अभी तलक मिटाया नहीं,
ये भी क्या कम इतफ़ाकी है !
बोल तो मेरी गज़ल में भी हैं,
मुझे तेरी खामोशी काफ़ी है !
तेरे होठों का चुप चाप रहना,
फिर आखों का सब कह देना,
ये भी क्या वादा खिलाफी है !
के तुम महबूब हो, दुश्मन नहीं !!

neat

इक याद छटपटाती रहती है गले में
जो कर देती है किसी भी मद को dilute !
इक ठंडी सांस घुलती रहती है जुबां पे
जो रखती है ज़हन को chilled !
साथी बना तो देता है एक peg मेरी खातिर
पर पूछता है के क्यों पीते हो तुम neat !!

आगाज़

मैं तो कब का गुज़र गया होता
शायद थोड़ा इंतज़ार ओर बाकी है !
किश्तो में मुकम्मल होती इस ज़िंदगी की
शायद कुछ आज़माइश ओर बाकी है !
इक लम्हा ख़तम हुआ है
दूसरे का आगाज़ अभी बाकी है !

मिठास

रावी को बना चाशनी
उडेल ली चाँद की कड़ाही में !
सहरां की रेत को बना शक्कर
बिखरा दी मैने आसमाँ में !
सितारों को उधेड़ बना ली जलेबी
चमकीले रंग की !

तू ज़रा घूमा दे अपनी उंगली इनमे
और बना दे मीठा !!

नाकाफ़ी

यूँ तो काफ़ी होती है प्यार की एक निगाह !
मगर वो अकसर सोचती है के
क्यों खुद प्यार नाकाफ़ी होता है किसी के लिए कभी कभी !

नज़ारा-ए-हाल

हैरत नहीं,
आवाम-ए-फरेब पे !
के जो दुल्हन विलखती हुई विदा होगी,
अभी उसे लेने को जश्न चला आ रहा है !!
अचंभे में तो हूं मैं,
अपने ही नज़ारा-ए-हाल पे !
के आगे आगे मैं नाच रहा हूँ,
पीछे पीछे मेरा जनाज़ा चला आ रहा है !!

है हमें जाना कहाँ, चले हैं कहाँ को हम

गणतंत्र होने का अर्थ सिर्फ़ एक संविधान का लेखा पन्नों में लिख लेना नहीं है | मेरी नज़रों में इसका अर्थ है "बिना किसी के अधिकार की अवेहलना किए राष्ट्र निर्माण के लिए लोगों का स्व: शक्ति संपन्न होना"| लोगों की सशक्ति ही इस शब्द को सार्थक करती है|
अगर स्वतंत्रता अधिकार है तो गणतंत्रता उत्तरदायित्व है और इस से बड़ा और महान उत्तरदायित्व शायद ही कोई ओर हो |

पर इस गणतंत्र दिवस पे जब आपके संविधान का दरबान "राष्ट्रपति" ही राजनीतिक तौर पे पक्षपाती हो और भारत वर्ष के लोगों को अपने वार्षिक सम्भोधन में अपने ही देश के एक राजनीतिक दल पर कीचड़ उछाले तो मेरे मन में सिर्फ़ एक सवाल उठता है:
"है हमें जाना कहाँ, चले हैं कहाँ को हम"

पर मेरा गणतंत्रता में विश्वास अभी भी है क्यों के भारत के लोग अभी भी "ज़िंदा" हैं !
इस गणतंत्र दिवस पे मुझसे शुभ कामनाएं नहीं, थोड़ा विश्वास ले लीजिए !

नयी चादर

अलसाए से दिनों में,
जब हम ऊब जाते थे नीरस शहर से !
खामोशी में बुनते थे कई ख्वाब,
पीपल के उस पेड़ पर टेक लगा के !
बारी बनाते थे ख्वाबों की हम,
वैसे ही जैसे घर घर खेलते हैं बच्चे अब भी !
और हर बार तुम जीत जाती थी,
मेरे काँधे पे रख के सर या गोद में बिखरा के ज़ूलफें !
ठगी ठगी में उंघने का नाटक करती थी,
और सज़ा लेती थी ख्वाब सिर्फ़ अपने !

मेरी बारी बाकी है, तुम कहां हो !
मैं तैयार हूं नये कपड़े पहने और नयी सफेद चादर लिए !!

एक लड़की जिसका नाम मोहब्बत नहीं

मैं लिखता हूँ तो लोग सोचते हैं के कोई इश्क़ की लकीर रास्ते से गुमराह हो गयी या कोई बेवफ़ाई की शिकन आई हो माथे पे| यूँ मुझे अनुभव नहीं अपने ही दर्द पे लिखने का; हमेशा दूसरों की ही कहानी दोहराई है अपने क़िस्सों में; पर चलो आज लोगों की तमन्ना पूरी कर देते हैं|
सही बात ये है के मैं लिख नहीं पाता अपनी ही ज़िंदगी पे क्योंकि मेरा खुद की मोहब्बत का किस्सा अभी अधूरा है| या शायद मैं सिर्फ़ मानता हूँ के अधूरा है; ता के एक आस बची रहे पूरा होने की| मेरी ज़िंदगी एक बबूल के पेड़ के जैसी है जो कांटों में रह के पूरा साल इंतज़ार करता है सावन में पीले फूलों का|
शामों के आड़े धागे और सवेरों के तिरछे धागे पिरो के मैं बना लेता हूँ अपनी ज़िंदगी की चादर| उस चादर में भर लेता हूँ मोहब्बत के रंग नीली सयाही से और सुनहरी शराब से| ये चादर ही मुझे काफ़ी है; यूँ भी क्या रखा है मेरे लिए उन महफ़िलों में जहाँ शराब हो पर सयाही नहीं|
मोहब्बत हो तो ऐसी के रात गुज़र जाए और फिर भी आस रहे के डायरी में कुछ पन्ने बाकी हों और शायद अभी भी सयाही बची हो कुछ! पर मेरी मोहब्बत एक मुंशी की डायरी है जिसमे ऩफा नुकसान दर्ज होता है| ऩफा कम, नुकसान ज़्यादा| नफे की बात आई तो, कभी कभी ऐसा भी होता है के मिल जाती है गुलाबों की चादर उन्हें जो सिर्फ़ एक गुलाब की राह देखा करते हैं| और लोग सोचते हैं मरने के बाद भला क्या ज़िंदगी!

मोहब्बत करने वालो की कैफियत ही कुछ और होती है| "बटालवी" को देख लो तो लगेगा के उसकी पैदाईश ही कविता को सार्थक करने के लिए हुई थी| हालाँ के था बिल्कुल उल्टा; उसकी कविता उसको सार्थक कर गयी|
मैं? मैं सोचता हूँ के मैं बस लिखता ही तो हूँ…

हमनवाई

रोज़ सवाल उठाते हैं मज़हब के ठेकेदार
के कैसे हो जाएं हमनवा काफिरों के साथ !
यूँ रोज़ नमाज़ पड़ी जाती है मस्जिद में
सामने वाले मंदिर की घंटिओं के साथ !!