रिश्ते का नाम

मेरा तुझसे ही तो रिश्ता है तो सच है लेकिन
नाम तू वो ही बता जो निभाने के लिए हो मुमकिन !

आधी मजबूरी

रो तो दूं मैं किसी रोज़
मगर कहाँ है तस्सली-बख़्श वो अहद !
के तुम भी बहा लोगे दो बूंद आंसू किसी दफ़ा
और बांट लोगे आधे सितम !

के ये दूरी बनाई हो भले मैने पूरी
पर मजबूरी तो आधी तुम्हारी है !!

लौ

बस यूँ ही चलते जाएंगे
साथ चलोगे, तो रास्ता दिखाते जाएंगे !
कुछ तो खुद जलते जाएँगे
बुझा कोई मिलेगा तो उसमें भी लौ भड़काते जाएँगे !!

बंटवारा

एक दिन था बांवरा सा
इक रात थी बौराई सी !
दिन फिसलता रहा रात पे
रात घुलती रही दिन में !
हर दिन चाँद निकलता था
हर रात सूरज जगता था !


दोनो बाँटते फिर रहे हैं अब समों को
यूं कैसे कहां रखे इतने लम्हों के गमों को !!

तुम्हारी कहानी

कहानिओं में घर बसा रहते हैं कुछ ख्याल जो अपने ही घर से निकल नहीं पाते | अंदर से कुण्डी लगा बैठे थे इस डर से के कोई चुरा ले जाएगा इन्हें, अब फँसे हैं खुद की ही बनाई क़ैद में| ये ख्याल पैदा हुए हैं यादों की कोख से इन्हें किसी प्रवरिश की ज़रूरत ही नहीं | डरे सहमे ख्याल बुनते भी हैं, उधेड़ते भी हैं, पर ज़्यादातर उलझे रहते हैं अपनी ही गिरहों में |
तुम भी आओ इस घर में और देखो तुम्हारे कज़रे की धार से भी नुकीले वयंग से काटती हैं यादें और कोई अपनी बाहों के मरहम से ज़ख़्मों को सहलाने वाला भी नहीं आस पास !
नहीं, तुम्हारी कहानी कोई ओर नहीं, मेरे साथ जुड़ी है !!

कुर्बानी

ओर कोई वक़्त निकाले ना निकाले
इक साँस है जिसने हर लम्हे में बंदगी बना रखी है !
बता इससे बढ़कर आशिकी में जुनून है कहीं
लोग तो जान देते हैं मोहब्बत में, मैने ज़िंदगी दे रखी है !!

पेशा ए मोहब्बत

हर शख्स रखता है कुछ बनने की ख्वाहिश,
तुम्हे मरने की आरज़ू से फुरसत नहीं !
मोहब्बत का पेशा है पर ऩफा नुकसान का इल्म ही नहीं !!

ज़माने में रहे होंगे कई तमाशबीन,
गोया शौकीन तुम भी कम नहीं !
इश्क़ में तमाशे हैं पर ये दिल बहलता ही नहीं !!

ऐसा कोई

रंज गुज़ारे और भूल जाए पुरानी ज़फ़ा,
ऐसा कोई कहाँ !
आँचल में छुपा ले बिना माँगे अहद-ए-वफ़ा,
ऐसा कोई कहाँ !!

ਇਸ਼੍ਕ ਦੀ ਰਾਹ

ਜਿਸ ਰਾਹੀਂ ਲੈ ਚ੍ਲਿਓਂ ਇਸ਼੍ਕ ਵੇ ਸੁੱਖੀ
ਉਸ ਰਾਹ ਅਕਲਾਂ ਦਿਆਂ ਧੁੱਪਾਂ ਤੇ ਵੱਗਣ ਤੱਤੀਆਂ ਵਾਵਾਂ ਵੇ !
ਵਾਟ ਲਮੇਰੀ ਦਮ ਨੀ ਮਿਲਦਾ
ਲੇਖੇ ਝਾੜ ਕੰਡੇਆਲੀ ਦਿਆਂ ਛਾਵਾਂ ਵੇ !
ਰਮ ਚ ਡੁਬੇਆ ਤੁੰ ਚੱਲੀ ਜਾਣਾ ਚਾਲ ਵੇ ਮਿੱਤਰਾ
ਇਸ਼੍ਕ ਫਕੀਰੀ ਜੀਅ ਨੀ ਛਡਦੀ ਸੰਗ ਲਵਾਈਆਂ ਲਾਵਾਂ ਵੇ !
ਫੇਰਾ ਪਾਏਆ ਜੋਗਿਆਂ ਦੇ ਮੌਲ ਨਾ ਪਾਏਆ ਸੱਧਰਾਂ ਦਾ
ਧੂਣਾ ਲਾ ਤੈ ਜੱਗ ਛਡੇਆ ਧੂਹ ਦਿੱਤੀਆਂ ਮੇਰੀਆਂ ਚਾਵਾਂ ਵੇ !

ਮੇਰੀ ਜਿੰਦ ਤੜਪਦੀ ਹਿਜ਼ਰ ਛੁਰੀ 'ਤੇ ਡਿੱਗ ਕੇ
ਮੈਂ ਕਦ ਤਕ ਠੋਕਰ ਖਾਵਾਂ ਵੇ !
ਇਸ਼੍ਕ ਜੋਗ ਨਾਲ ਨੈਣ ਲੜਾਏ ਇਲਮ ਫਾਜ਼ੀਲ ਨਾ ਬਣ ਪਾਏ
ਤੁੰ ਦੱਸ ਬਿਨ ਰੂਹ ਤੋਂ ਕੀਕਣ "ਮੈਂ" ਨੁੰ ਪਾਵਾਂ ਵੇ !
ਇਕ ਥੋਂ ਮੁਰ੍ਸ਼ਦ, ਇਕ ਥੋਂ ਦੁਨੀਆ, ਵਿਚ ਤੁੰ ਪਾਈਆਂ ਭਾਂਬੜਾ
ਰਾਹ ਨੀ ਪੌਂਦੇ ਕੌ ਵੀ, ਹੁਣ ਕਿਹੜੇ ਪਾਸੇ ਜਾਵਾਂ ਵੇ !
ਕਿਸ ਰਾਹੀਂ ਲੈ ਚ੍ਲਿਓਂ ਇਸ਼੍ਕ ਵੇ ਸੁੱਖੀ
ਕਿੰਝ ਲਾਵਾਂ ਤੇ ਕਿੰਝ ਨਿਭਾਵਾਂ ਵੇ !

ਏ ਕਿਸ ਰਾਹੀਂ ਲੈ ਚ੍ਲਿਓਂ ਇਸ਼੍ਕ ਵੇ ਸੁੱਖੀ... ਕਿਸ ਰਾਹੀਂ...

सलाई

सर्दिओं की केचुली पहने इक याद, रात भर डसती रही,
मैं बुनता रहा आँसुओं से गिरहें, के जैसे तेरे शाल के धागे हों !
सूरमे की सलाई आखों में अब मत लगाया करो, इसमे पिरो लो नया धागा,
और बुन लो नयी शाम, तुम्हारी आँखों से टपक चुकी रातें सारी, जो मेरी थीं !!

सवाल

दुखद ये होता है के कोई इश्क़ पे लिखता हो
और उसे कभी इश्क़ हुआ ना हो !
दुखद होता है जुदाई को सिर्फ़ दिमाग़ से समझना
और हिज़र के एहसास के लिए तरसना !
दुखद होता है भीड़ में खड़े हुए
तन्हाई को समझने की कोशिश करना !

इस से दुखद कुछ नहीं होता के हाथ में जाम ले के
सोचना के क्यों है मेरे हाथ में जाम !!!

गीली मिट्टी की खुश्बू

चल निचोड़ लेते हैं गीली मिट्टी की खुश्बू,
सूखेगी तो फिर मिलेगी नहीं पहली बारिश, अगले सावन तलक !
मेरे रुखसारों पे भी होती है हर बार,
बारिश, के जैसे पहली बार हुई हो !!

चल निचोड़ लेते हैं वस्सल का रस
मुरझाए तो फिर मिलेंगे नहीं फूल, अगली बहार तलक !
मैने सींची है मोहब्बत की फसलें इस तरह,
बीजाई, के जैसे आख़िरी बार हुई हो !!

टीस

आले में रखा दिया बुझ जाता है जलने के बाद,
मगर पीछे छोड़ जाता है एक मधम सी लौ !
तुम्हारे आँसुओं ने भी सीख लिया है,
टपकना किसी ओर के काँधे पे !
तुम्हे बस इतना भर साबित करना है के
तुम्हारी टीस में मेरी टीस का कोई अंश बाकी नहीं है !
यूँ ज़िंदगी चलती रहेगी अपनी रफ़्तार,
और तुम दिया जलाती रहोगी पहेले जैसे !!

खैरात

अभी ज़िंदा हूं, थोड़ी वफाएं तो ले जा !
कब्र पे रोने का वादा ठीक है
अरे सितमगर, खैरात दी है, थोड़ी दुआएं तो ले जा !!

प्रेम की परख

कुछ लोग दूर होते हैं तो लगता है के ज़्यादा पास हैं, आमने सामने चुप्पी की एक दीवार बन जाती है | कुछ दार्शनिक लोग और प्रेम के माहीरों का कहना है के जब दिलों में नज़दीकियां हों तो शब्दों की ज़रूरत नहीं रहती | मेरा मानना अलग है - कहने की ज़रूरत होती है, कहने को बहुत कुछ होता है, बहुत सी बातें होतीं हैं पर हम कह नहीं पाते | शायद इसी लिए इंसान ने संगीत और कविता को जन्म दिया, एक ज़रिए की तलाश में | मैं भी नाप तोल के भोली सी प्यार की रीझ को रिसने देता हूँ शब्दों के ज़रिए मगर कुछ शब्द बनावटीपन का शिकार हो ढेर हो जाते हैं तो कुछ अपनी ही करतूतों पे लज़्ज़ा जाते हैं |
मैने जीवन में विदायगी बहुत देखी है, ना हिज़र ना वस्सल, बस विदायगी ! लोग आते हैं और चले जाते हैं, कभी कोई रुका नहीं | मैने बहुत कोशिश की जाते हुए लोगों को रोकने की, मगर कोई रुका ही नहीं | इस मुआमले में जीवन ने मेरे साथ कभी निरपक्षता नहीं दिखाई और शब्दों ने कभी साथ नहीं दिया| एक बात यह भी है के मैं भी कभी रुका नहीं और कभी किसी को सुना नहीं |
जाते हुए लोगों की पीठ, जाती हुई ट्रेन या बस और खिड़की में से एक उदास मुस्कान, ऐयरपोर्ट के दरवाज़े में ओझल होते हुए लोग, कैब में से बाइ-बाइ करती हथेलियाँ... मुझे वो सब लम्हे याद हैं | विंडबना ये है के मुझे मेरा किसी को पीछे छोड़ना याद नहीं आता | बहरहाल, कुछ याद रखना या किसी के लिए रुकना वैसे भी प्रेम की परख नहीं है |

सही बात यह है के प्रेम की परख ही नहीं हो सकती !

मैट्रिमोनिअल साइट्स

प्यार में सभी बच्चे हो जाते हैं । सही बात यह है के हम हो जाना चाहते हैं क्यों के सिर्फ बच्चे ही हैं जो सच्चा प्यार कर सकते हैं । इसी लिए हम बच्चे बन के कोशिश करते हैं के हमारा गर्लफ्रेंड/बॉयफ्रेंड वाला बनावटी प्यार बच्चों की ही तरह सच्चा हो जाए । काश ! भले ही बच्चों वाला प्यार पाया न हो, कभी उसने भी बच्चों वाला प्यार किया ज़रूर था । वो कुछ खास ख़ूबसूरत नहीं थी, शायद औसत से भी कम थी । चेहरा-वेहरा नहीं देखा था उसने, बस महसूस किया था उसकी हथेलिओं का होना अपने रुखसारों पे बिना वजह, महसूस किया था एक पगली लड़की का असमय किसी बात पे पगला जाना, महसूस किया था हवा का वो झोंका जो बार बार उसकी ज़ूलफें चेहरे पे उड़ा के परेशान करता था, महसूस किया था के जो झर झर बहे वो आंसू किसी ओर के लिए थे...
बस महसूस किया था ! जिसके लिए सज़ा मिल गयी उम्र क़ैद की उसके सपनों को !!

जो चेहरा कभी ठीक से देखा नहीं आज वो मैट्रिमोनिअल साइट्स के चेहरों में वही चेहरा तलाशता रहता है के शायद बच्चों वाले सच्चे प्यार का सौदा कहीं तए हो जाए !

मुफ़लिसी

तुम्हे फुरस्सत नहीं है नये गुलों से गुलज़ारों में
या अब वो शिद्दत नहीं बची मेरे इंतज़ारों में !
कटोरा मेरे सामने रखा, आज भी खाली है
दौलत है, पर जेबें खाली हैं मोहब्बत से सबकी बाज़ारों में !!

चिंगारी

यूँ दिन भर निकल जाता है कोई ना कोई कशमकश में
पर रात को जल उठता है इश्क़, आले में दिए की तरह !
कब की बुझ गयी होती, नशे में लौ लड़खड़ाती रहती है,
बस यादें हैं जो चिंगारी भड़काती रहती हैं फ़िज़ाओं की तरह !!

गुफतगूं

हिज़र में, बदनसीब की कैफियत क्या है, सुनो
दुआ भी कबूल नहीं होती मज़ारों में !
तालुकात तूने मुझसे तोड़ा, ज़माने से नहीं
क्यों अब तेरी आमद की गुफतगूं भी, नहीं मिलती बाज़ारों में !!

घर घर

भर लेते हैं गैरत मुठ्ठी में
और इकठी कर लेते हैं मुफ़लिसी कुछ जेब में !
के शायद कोई ओर दौलत मिले ना मिले
हम घर घर खेल लेते हैं इसी से !!

कनीज़

ये मोहब्बत ज़िंदगी की वाली नहीं, शहादत की कनीज़ है !
और भी आएंगे मेरे बाद, पहेले भी आए थे कई,
के ये इश्क़ निभाने की नहीं, कर गुज़रने की चीज़ है !!

तबायफ़

कोई बैठा होगा आज भी वहीं पे, इंतज़ार में, नज़र आसमान का सीना चीरते हुए, के ये दिन अभी ढला नहीं...
वो आज भी अकेली है और बन बैठी है तबायफ़ मेरी नाकामी के कोठे पे !

और इधर मैं भी एक कशमकश में के ये उधारी कब निबटेगी, के ये रात बाकी है अभी पूरी की पूरी...
मैने बेच दिया है एहसास तक उसके होठों का अपने होठों से उठा के और रह गयी है पीछे एक ख़स्ता चमड़ी !

कोरा मील पत्थर

सभी बच्चे मासूम हुआ करते हैं, पर वो कुछ स्यानी सी थी|
वो कटी पतंग की तरह हिलोरे खाती आ धमकी फिर से| आज मैडम जी ने ज़िद्द पकड़ ली के बुधिया के गांव के पार जाना है| रोज़ शाम को शहर के बाहर फेरी दिलाने ले जाता था उसे, आज कल काम का बोझ ज़्यादा था तो कुछ दिन फेरी नहीं हो पाई| फिर से आनाकानी की, तो चैलेंज दे दिया के मैं इतना दूर जाने से डरता हूं| काम निकलवाना कोई बच्चों से जाने!
उसकी फ्रॉक की जेब में एक कैमलिन के कलर्स की डिब्बी हमेशा रहती| वो जहां भी मील पत्थर देखती तो सफेद कलर से पुताई को ढान्क देती और काले से, मील कम कर के दोबारा लिख देती| उसे लगता था के ऐसा करने से मुसाफिर का रास्ता कम हो जाएगा क्योंकि मील पत्थर तो हमेशा सच बोला करते हैं|
इस उमर में दूसरे कहानियां सुनते हैं पर मैडम जी की दिलचस्पी जवाब सुनने में थी| मेरे जवाब कनखिओ से भांपते रहते के शायद सवालों को उनकी मंज़िल मिल गई हो और पीछा छोड़ दिया हो, पर हर बार वो जादूगर की तरह अपनी चोटी के नीचे रखे नन्हें से पिटारे में से नये नये कबूतर उड़ाती रहती| आज उसके कबूतरों की उड़ान कुछ ज़्यादा ही थी| बुधिया का गांव कब का पीछे छूट गया, संध्या का वक़्त, मैं रास्ता भूल गया और गांव की पगडंडीओं पर वैसे भी दिशा निर्देश नहीं रहते| तैअ हुआ के पहेले पक्की सड़क ढूंढी जाए| घुस्मुस्से में कुछ यतन के बाद पक्की सड़क मिली, पर फिर भी रास्ते की कुछ समझ ना आई और आस पास खेतों में आँधियारे के समय कोई था भी नहीं| तो सोचा किसी भी ओर चल के कहीं दिशा निर्देश मिल जाएगा| एक ओर कुछ दूर चल के मील पत्थर दिखा|
वो देखते ही साइकल से उतर कर भाग के पहुँची और अपनी कलर्स वाली डिब्बी निकाली और पीछे पीछे मैं| नज़दीक पहुँच वो देख के किल्कारी मार हंस पड़ी| उस मील पत्थर पे कुछ ना था, ना मंज़िल लिखी थी ना दूरी, सफ़ा-चट कोरा !! उसे उसने वैसा का वैसा ही छोड़ दिया, बोली, के ये भी हमारी ही तरह भटक गया है|

दो कटिंग

एक में अदरक ज़रा तीखा था,
दूसरी में हंसी की चाशनी से निचोड़ा मीठा !
यूं तो मेरे तंज़ अपनी फ़ितरत के गुमान में थे,
पर अपनी तो थोड़ी जीत थोड़ी मात थी !
बस दो कटिंग की बात थी !

एक में मेरी गरम सांसें घुलती हुईं,
दूसरी पे चांद सा तेरी लिपस्टिक का निशाँ !
यूं तो बादल की चादर औड़ सोने चले थे सितारे,
जो बांट ली हमने वो चांद की रात थी !
बस दो कटिंग की बात थी !

उलझन

फिर वो सूखा लेती है अपने बाल,
मेरी उंगलिओं के स्पर्श निचोड़ कर !
और बाँध लेती है कस के,
अपनी हया के 'रब्बर बैंड' में !
मैं सरका देता हूँ वो लट रुखसार से,
जिसने छुपा रखा था होंठों पे इक तिल को !
यूँ तो धब्बा है पर दूर उफक पे सूरज की तरह
उजागर होता है सुरख आसमान में वो तिल !


मैं सोचता हूँ इस चांद को कहाँ रखूं,
जो पूरी रात सोया रहा मेरे सिरहाने पे !!

लम्हे

कोशिशें नाकाम हों या लम्हे खाक हों, फरक नहीं,
लड़ते रहे हैं दोनो वक़्त से अब भी !
उसे याद है पहला दिन मुलाकात का,
और मुझे आख़िरी दिन तालुकात का !

हैपी वीकेंड

आज के दिन ऑफीस में "हैपी वीकेंड" कहने का एक क़ायदा सा है !
मैं प्रेशान हो जाता हूं,
एक यह सोच के लोगों के "वीक्डेज़" क्यों "हैपी" नहीं होते,
दूसरा यह सोच के मुझे कोई "गुड नाइट" नहीं कहता !
मुझे ज़रूरत है ऐसी शुभ कामनाओं की,
के तुम्हारे बिन दिन तो कट जाते हैं मगर रातें नहीं !!

यूं ऑफीस का एक "गार्ड" बोलता है "गुड नाइट",
पर उसका कहना मिथ्या सा है ,
मुझे लगता है जैसे मैने उससे कुछ छीन लिया हो !
वह शुभ-कामना नहीं अपितु कामना होती है,
वो रात भर तन्हा जागता है "गुड नाइट" की उमीद में !!

'तुम'

रेडियो पे एक गीत चल रहा था - 'ज़िंदगी धूप तुम घना साया' !
मैं अभी तलक उस 'तुम' को ढून्ढ रहा हूँ !
ना जाने मेरे कितने 'तुम' गुम हो गए हैं,
'तुम' को ढूँढते हुए !
और कितना आसान था तुम्हारा 'तुम' ना रहना,
'तुम' आख़िर 'तुम' ही रहे !!

निशान

यूँ तो अब सिर्फ़ निशान बचे हैं दीवारों पे,
तस्वीरें को उनके रंगों के साथ उपर वाली कोठरी में रख आया था !
मेरे उजड़े हुए घर की कहानियाँ,
अब मकड़ी के बसाए हुए घर के साथ रहती हैं !
एक आईना बचा है पीछे की दीवार पे जिसमे से,
रोज़ सुबह चोरी से तुमको निहारा करता था !
अब मैं अक्सर पूछता हूँ खुद से के सामने
आईना है या तस्वीर टॅंगी है फूलों के हार वाली !
यूँ तो अब सिर्फ़ निशान बचे हैं !!

बदगुमानी

तुम जो आ जाते हो ख्यालों में
बिन बुलाए मेहमान की तरह !
खुद को बचाए रखने की कोशिशें
दगा दे जाती हैं बेईमान की तरह !
बंद कर लेती हूँ किवाड़ और छुपा लेती हूँ खुद को
यकीन है आओगे तुम पर रहती हूँ बदगुमान की तरह !!

'शिव' का जीना

मैने रंज गोद ले लिया है,
और पालता हूँ अपनी ही ख़ुदकुशी को !
देख के गम वालिद का,
मौत खुद कहती है के
'शिव' का जीना यूँ ही ज़ाया ना था !!

सीने में तमाशा

एक तो याद है तुम्हारी हर ज़र्रे पर टॅंगी हुई,
और एक सीने में तमाशा, वो अलग !

एक पत्ता गिर पड़ा पेड़ से,
जिसके नीचे मैं खड़ा हूं,
बारिश से बचने के लिए !

सोचने वाली बात है के यूँ ही,
नयी कोपलों वाले छोटे मासूम से पत्ते ही,
शहीद होते हैं तूफान में !

उस असमयक समय तुम याद आ जाती हो मुझे.
के तुम्हारी आँखें भी कितनी मासूम थीं !
झपक जाती थीं, जैसे शाख लचकी हो,
किसी परिंदे के उड़ने पे !

आज कल पता नहीं क्यों,
छतरी के नीचे भी भीग सा जाता हूं !
उस दिन तो तुम्हारे साथ,
बारिश में भी सूखा रह गया था !!

तुम आ जाओ जहां कहीं भी हो,
के तुम दूर हो मगर गैर नहीं !!

कोने में

उसे आ जाता है फोन उसके मंगेतर का,
मेरे फोन पर भी बज उठती है धुन "ये दूरियां" गीत की !
हम दोनो बातें करते हैं दो अजनबिओं से,
खुद को एक दूसरे से अजनबी बना !
और मैं मसोस के रख लेता हूं मन को,
एक कोने में जहां कोई आता जाता नहीं !!

इक गिला है

इक गिला है गुज़ारिश के दरीचे में !
जब ख्वाहिश की हवा याद के चिल्मनो को उड़ाती है,
तो गिला नासूर बन के पुकारता है के,
मुझे अफ़सोस है जो मैने तुमसे मोहब्बत की !
ये शब्द दर्ज़ हैं मेरी हर उस कविता में
जिसमे मैने तुम्हारा अक्स ढूँढने की कोशिश की है !

मायूसी

पता नहीं यह मेरी मायूसी है मोहब्बत से
या मोहब्बत मायूस है मुझसे !
हाँ मगर, मायूसी है और कुछ शब्द हैं बयाँ करने को !!

दरवाज़े

मैंने सहेज रखे हैं अपने सवाल!
सुनता रह जाता हूँ,
पर जवाब कोई बोलता ही नहीं!

कई दरवाज़ों के पते मिल गए!
खटकाता रह जाता हूँ,
पर कोई खोलता ही नहीं!

आज चार ओर रख लीं

तेरे लतीफों में से छिटकी हँसी को
गुल्लक में छुपा लिया था !
और पिछली बारिश की चार बूँदें बचा के
गांठ बाँध ली थी चुन्नी के सिरे में !

कल तुम्हारा एक लतीफ़ा मिला मुझे
अपनी ही हँसी में !
और गांठ खोल के भिगो गया पल्लू !!

आज फिर से बहुत बूँदें बरसीं
तो चार ओर संभाल कर रख लीं !!

अदल-बदल

चल अदल-बदल लेते हैं वक़्त की घड़ियां,
और नाप लेते हैं एक-दूसरे के गमों के पैमाने !

ये महखाने के बाहर टॅंगी रात, वो तेरी
जो बिस्तर की सिलवटों में पिसी रात, वो मेरी

इस सिगरेट के छल्लों में उड़ी, वो शाम तेरी
और जो बालकनी की उदास फ़िज़ा में घुली शाम, वो मेरी

पर एक सुबह रख लेते हैं जो हम दोनो की होगी,
और उस सुबह के बाहर तख़्ती लगा देंगे
"Do Not Disturb" की !!

संयोग या शायद कामना

उसे लेमन टी पसंद थी और मुझे जिंजर टी
ये जो ग्लास भरा है उसका रंग भी कुछ लेमन टी जैसा है !
और मैं उठ के यादों को जीवित करने खिड़की पे आ जाता हूँ
मैं भूल जाता हूँ के खिड़की के आगे एक परदा होता है !
पर जाने क्यों ये आभास ज़रूरी नहीं, तुझे याद करने को !
परदे में वही रंग हैं जो तेरे कमीज़ पे थे उस दिन !
शायद यह सिर्फ़ एक संयोग है,
या मेरी कामना के तू बसे कहीं आस पास मेरे !!

मौत की गुज़ारिश

मेरी दिली तमन्ना है के मैं मरूं तो ज़िंदगी के जैसे मरूं,
मौत को भी एक ज़िंदा-दिल मेला बना देना चाहता हूं !
मैं अपनी बाइक को दूर से भगा के,
किसी पर्वत् की चोटी से उछाल देना चाहता हूं !
मौत से पहेले के पल में पूरी ज़िंदगी जी लूं,
अपने पैरों पे नहीं, अपने वजूद पे खड़ा होना चाहता हूं !

यूं तमाशबीन कहते हैं के मोहब्बत के बिना
ज़िंदगी कोई ज़िंदगी नहीं !
मगर आज तो मैं ज़िंदा हूँ,
ये जो फर्याद है मौत की, वही ज़िंदगी का सबूत है !
वही मेरे ज़िंदा होने का सबूत है !!

सिलवटें

कुछ बच्चों सा प्यार था, जो उलझा सा रहता था अपने आप में ही - कभी नींद में डूबा डूबा सा तो कभी झाग से लड़ता हुआ| और शायद बच्चों की ही तरह उसने भूला दिया ये सोच कर के अलहड़ उम्र में रंगी जानी वाली तस्वीरें, बस ग़लतियाँ होती हैं, जिन्हें वक़्त रहते ठीक कर देना चाहिए|

और मैं भी ये सोच चुप हो गया के इस ख्वाब का भला कौन साक्षी रहा है, जिसे सिर्फ़ हम दोनों ने देखा था| तन्हा रातों और ख्वाबों से किसी ओर को हमदर्दी नहीं हो सकती| समय एक मिथ्या है, ये घड़ी की सुईयां बेशक कबूल कर लें पर वो बादल नहीं करते जो मेरी पलकों पे सज़ा गये थे तुम| मगर समय सच में एक मिथ्या है जिसे असल में कोई देख नहीं पाता बस हम मान लेते हैं| मेरी रातें अपंग हो कर ठहर गयी हैं किसी सुंदर मुकाम पर - किसी हसीं परी से जैसे उसकी खूबसूरती चुरा कर बना हो वो मुकाम| बरसों किसी ने मेहनत की हो जैसे खुद को खुद में छुपा देने की - तुम यूँ रूई की तरह सिकुड जाती थी और मैं किसी सॉफ्ट-टॉय जैसे तुम्हे सहलाता रहता| मैं आज भी बिस्तर की बाईं ओर खाली छोड़ कर सोता हूँ, पर बाईं ओर अब सिलवटें नहीं पड़ती|

मायूसी

मेरे फेंके कंकरों से सिलवटों में बदलती शांत सी उस झील के किनारे
डुब्बक डुब्बक आवाज़ दिलों में मचे शोर को छुपा लेती थी !
तुम ढास लगाए मेरी पीठ के साथ बैठी
घास को उधेड़ हमारी ज़िंदगी बुन दिया करती थी !

आज भी छाओं तो वहीं इंतज़ार करती है हमारा
पर शायद अब बुनने को कुछ बाकी नहीं है !!

यादों की गठरी

सुबह की सांस सी बासी कुछ यादें थी,
जो गठरी में बांध ट्रंक में रखीं थी !
और जब मैं ख्वाबों को तह लगा रही था,
आज फिर बरस बाद बारिश हो गयी !
मुझे फिर से काट खाने लगी,
ये बूँदें यादों को कुरेदती हैं !
मैं सोचती हूं के ख्वाबों को तह दूं,
या गठरी को फिर सम्भालूं !

जीवन से उधड़ी ये बिखरी सी कतरनें !
मैं उकता गयी हूं इनको समेटते !!

तन्हाई

तन्हाईओं में मुकम्मल हो जाएं ऐसी रातों की कमी तो नहीं !
के तू मिले ही तस्सव्वुर में, ये लाज़मी तो नहीं !!

सुबह का भूला

मैं राह तकती हूँ जुगनूओं के सो जाने का,
तुम ने तो सितारे तोड़ सुलगा लिया था अपनी बैल-गाड़ी का लैंप !
और छोड़ गये थे पीछे एक मध्म सी रोशनी
जो अब भी सुलग रही है वरांडे के दरवाज़े पे !
किल्कारी सी मार खिल-खिला उठती है नदी
जब सूरज सर पे आता है और मैं धार बन बहती रहती हूँ दिन भर !
दिन ढले नदी के किनारे बरगद के पेड़ के नीचे,
कोई गुनगुना रहा होगा वही जो तुम गुनगुनाते थे !
और मुकम्मल हो जाता है सफ़र पन्छिओ का !
सुबह का भूला ना भी आए तो शाम कहाँ रुकती है,
किसी के इंतज़ार में !!

रेत

और उस दिन एक लड़की बोली के, यूं एक टक मत देखा करो, अच्छा नहीं लगता !!
-------------------------------------------------------------------------


|| रेत ||
तेरा ख्वाब आ के नींद से जगा जाता है
अतीत में से कोई लोरी ढूंढ, खुद को सुनाता रहता हूँ !
कोई होड़ लगी है तुझे मुकम्मल करने की
मैं तुझको पैमाना बना, हर शख्स को मापता रहता हूँ !
मेरी मुफ़लिसी ही मेरा जनून है
जहां मुठी भर मिलती हो, चुराता रहता हूँ
रेत फिस्सलती जाती है मुठी में से
मैं ओर ज़ोर से दबाता रहता हूँ !!

मृगतृष्णा

एक कहानी जो “on the rocks” पे शुरू होती है
स्मृति की गोद में बैठी दौड़ती रहती है मेरे ज़हन में !
मैं समझ नही पाता इसका अंत कहाँ है
और हर रात एक सी क्यों है !!

मील का पत्थर

कुछ उलझ सी गयी हैं अब यादें
तुम्हारी ज़ुल्फों सी !
उंगलिओं से सुलझाने की कोशिश करता हूं
सर-सरा जाती है अतीत की फ़िज़ा जब !
और काग़ज़ पे कालिख हो रह जाती हैं
उलझी हुई गुथिआं अतीत की !
मैं भले ना मानूं पर पता है
काग़ज़ पे छाप पड़ी है तुम्हारी ज़ुल्फों की !
पर मिथ्या सी हो चली है अब हर छाप
जो पड़ी है अतीत के रास्तों पे !

मोजों में रख रखे हैं काँच के टुकड़े मैने
आज कल रास्ते खुद से चुभते नहीं हैं पावं में !
मुझे समझ नहीं आता के ये रास्ते
किताबों से क्यों नहीं होते !
पड़ाव मिलते हैं पूरे करने को एक बार में
और मैं बार बार एक ही सफ़ा खोल लेता हूं !
जिस सफे पे उस मील-पत्थर की कविता लिखी हुई है
जिस पर ख्वाहिश नाम का शब्द कुरेदा हुआ था !

मैं मील के पत्थरों को गिनता हूँ
के ज़िंदगी का सफ़र बहुत लंबा हो चला है !
कोई हमसफ़र मिले तो मौत तक का सफ़र आसां हो जाए !!

चेहरे

रोज़ शहर भर के चेहरे टटोलता हूँ
कुछ ढूंढता हूँ वो मिलता क्यूँ नहीं !
यूँ तो उस दिन आँखों में छुपा लिया था
पर अब दिखता तू क्यूँ नहीं !!

बीड़ा

और यूँ ही कभी भूल जाते थे दोनो खुद को
जब हो जाते थे स्वार्थी !

कई कई सालों तक
गूंगी उंगलिओं से टटोलते रहते वो शब्द
और पलकें करती रहती ज़ुबां की रीस

अब तो
मैं उंगली घुमा देता हूँ शराब के ग्लास में
और पलकें पोंछ देती हैं ज़ख़्मों की टीस

मैं चुप हूँ के कहने का बीड़ा तुम्हारा है इस बार !!

हादसा

ना तो गुलाब से कोई होंठ देखे
ना मोतीओं सी कोई हँसी
ना ही रसीले गीत लिखे
ना प्रीत की कोई धुन बजी !

पेड़ से हरे पत्ते भी यूँ झड़े, सूखे पत्तों की तरह
के जैसे हादसा हो गया हो कोई !!
हां, हादसा ही तो था !!!

रात

यह रात बैठी है दरवाज़े पे टकटकी लगाए!
किसी के इंतज़ार में नहीं,
पर किसी की तन्हाई पे कुण्डी लगाए !!

खामोश सी सोच को बर्फ के टुकड़ों पर रखे
सिरहाने तले कुछ जगी आँखों के ख्वाब रखे
उलझी है किसी कश-म-कश में !
ऐसी ही किसी रात मोहब्बत का जन्म हुआ था,
आँसुओं में भीगी आँखों के साथ !!

और मैं नतीजे पर पहुँचता हूँ के
ऐसा या वैसा होना सब ख्याल ही हैं !
वैसा होता तो भी क्या होता,
रात तो आख़िर रात होती है !!


और फिर रात भी रोआन्सा होकर बोली
के तुम भी तो तुम ही हो !!
और मुझे याद आया के कुछ खो गया है...

डूबता सूरज

यूँ तो बस डूबते सूरज की हल्की सी लौ होती है,
पर लगता है के,
चाहत बाकी होगी ज़रूर कहीं पे !
मुझे धुँधला सा ही सही, पर दिखता ज़रूर है !!

कहानी

कहानियाँ भी अजीब होती हैं !
कोई दो पल में सिमट जाती है,
तो कोई दो शब्दों में !

यूँ सदिओं इंतज़ार करते हैं वो पल,
के कोई टेबल-लेम्प में पूरी रात जागेगा !
और शब्द मिलते हैं लाइब्रेरी की अंतिम शेल्फ पे,
कोने वाली किताब के आख़िरी सफे पे, बुकमार्क के पीछे छुपे हुए !

मैं ढूंड रहा हूं उन दो शब्दों के आख़िरी अक्षर को !
कोई चुरा के ले गया है उसको,
अपनी डायरी की कहानी पूरी करने के लिए !

आज भी ऐसी डायरियां रद्दी के भाव बिका करती हैं !!
और राज़ छुपे रह जाते हैं कबाड़ी की दुकान में !!

खोज

मुद्दत हुई के कुछ गुम हो गया था
और अब कुछ खोजता रहता हूँ !
हक़ीकत ख्याल बन रही या ख्याल जो हक़ीकत हो गया था
बस यही सोचता रहता हूँ !!

नाम

ग़रीबी में इख्तिआर नहीं होता, किसी लेन-देन का ! क्या भला, कब उधारी एक नसीहत बन जाए जिसे ज़िंदगी भर पुगाना पड़े !
ओर कुछ था भी तो नहीं ग़रीब के पास, उसे देने को; बस इक नाम के सिवा !

कोई ऊँचा स्वर गुज़रा हो गली से,
और पीछे भीनी सी आह छोड़ गया हो जैसे,
और बस इस तरह मेरा नाम उसके होठों पे लरज़ा के रह गया !
जैसे पेड़ पे टपकी बारिश की बूँद,
काफ़ी देर पत्ते से उलझती रही हो,
और फिर गिर पड़ी हो घास पे !
वो नाम यूँ तो सूख गया है उसके गालों से,
पर जिसको आज भी वो कभी कभी नींद में बड़-बड़ाती है,
के जैसे पूरा कर रही हो जो अधूरा रह गया था !!

बदनसीबी

खुद के ही कंधे पे सर रख रोए, ऐसा ओर कौन बदनसीब होगा,
ज़िंदगी की लकीर लंबी हो और कफ़न भी जिसका रकीब होगा !!

यूँ इश्क़ के मारे तो मुझसे पहेले भी कई हुए हैं !!

रेगिस्तान

ऱत्ता-ऱत्ता जल उठता है,
प्यास से गला सूख जाता है,
होंठ ककड़ी जैसे हो जाते हैं,
शायद रेगिस्तान ऐसे ही बनता है !
बहुत देर तक बारिश नहीं होती !!

झूठे सच

"मैं तुम्हे भूल भी जाऊं,
पर कैसे भूलोगे तुम मुझको"
यह कहते हुए तब
उसकी आँखों में आँसू नही बहे थे !
शायद किसी वक़्त बेवक़्त के लिए आखों में छुपा रखे थे !

और अब भूलने की कोशिश में याद आ जाता है बहुत कुछ,
पता नहीं चलता कब उसकी हंसी में मैं रो जाती हूँ !
ये वही झूठा रोना होता है जो मैं सिर्फ़ ,
उसके मनाने के लिए रोती थी !
पर हम दोनो ही जिसे सच मान लेते थे !!

और अब सब झूठ जैसे सच हो रहे हों !!

प्रेम की पहाड़ी

मैं प्रेम को पहाड़ी समझ चढ़ गया !
सोचा शिखर पर पहुँचुगा तो तेनज़िंग जैसे नाम होगा !
मगर प्रेम एक गहरी खाई है !
और इसमे उतराई नहीं होती, बस गिरना होता है,
और वापिस फिर चढ़ भी नहीं सकते !
हां नाम होता है बहुत किसी रांझे जैसा,
मगर चोट बहुत लगती है !

आज मुझे याद आया वो दिन,
जिस दिन मेरा पैर फिस्सला था इस खाई में !
तुम मुझे बहुत खूबसूरत लगी थी उस दिन !!

चुपके से तो वो भी रोता होगा शायद...

काफ़ी देर छटपटाती है आलिंगन को,
और फिर चीख उठती है सुनी बाहों की तन्हाई !
काजल बिखरा है किसी के इंतज़ार में,
और सुलग रही है ज़ुल्फों में क़ैद रुसवाई !
दरवाज़े को ऐसे ताकती रहती हैं नज़रें,
रेगिस्तान में अकेला पेड़ जैसे ले रहा हो जंभाई !

यह इश्क़ उलझ गया है मुझसे ही,
जीतूं तो किस से और गर हारूं तो किस से यह लड़ाई !
चुपके से तो वो भी रोता होगा शायद,
पर्दों के पीछे ही अक्सर दम भरते हैं ये आंसू हरजाई !


चुपके से तो वो भी रोता होगा शायद...

तंज़

खुद पर ही तंज़ बर्बाद करता हूँ जो अब मैं
तुमने भी कौन सा गीला बचा रखा है किसी फिराक़ में !

कांधा

कई किस्से होते हैं जो मौत के बाद शुरू होते हैं और जन्नत के बाद जो एक जहाँ होता है वहाँ सुनाए जाते हैं| एक किस्सा वहाँ के एक दरखत से टूट के धरती पर गिर पड़ा, मैने उठाया तो लगा के जैसे किसी की अलसाई सी नींद हो जो छूने भर से टूट जाएगी और रख दिया उपर वाली कोठड़ी में पड़े एक संदूक में| वो किस्सा अब सूख के गुलाब की पंखुड़ी बन चुका है जिसमे पायल की सी छन-छन आवाज़ आती है| और मुझे लगता है ये वही पायल है जो मैने महबूब को पहनाई थी|

--------------------------------------------------------------------------------------------


 
तेरा जनाज़ा निकला तो मेरे कूचे से ही था,
मगर कांधा देने आया तुझे मेरे सिवा ज़माना सारा !
मैं बस सोता रह गया !

यूँ तो कोई तगाफूल ना था,
बस मेरा जनाज़ा तेरे जनाज़े के पीछे पीछे आता रह गया !!

कफ़न

मैने सीधे वाले धागे बाँध दिए हैं
तू आना
और तिरछे धागे बुन देना !
इस कफ़न की उमर बहुत हो गयी है
ले आना थोड़ी मिट्टी
तकबीरें कहेंगे लोग, बस सुन लेना !!

ਉਠ ਓਏ “ਸ਼ਿਵ” ਸੁੱਤੇਆ

ਉਠ ਓਏ “ਸ਼ਿਵ” ਸੁੱਤੇਆ, ਅੱਜ ਕਰ ਕੋਈ ਤਕਰੀਰ
ਰਾਂਝੜੇ ਧਰੀ ਬੈਠੇ ਮੌਨ ਤੇ ਵਾਟ ਉਡੀਕਦੀ ਹੀਰ !
ਟਟੋਲ ਛੱਡੇਆ ਜੱਗ ਸਾਰਾ, ਨਾ ਦਿੱਸਿਆ ਫਕੀਰ ਨਾ ਬਚੇਆ ਦਿਲ ਗੀਰ
ਯਤੀਮ ਛੱਡੇ ਜੱਗ ਚ ਤੇਰੇ, ਹੁਣ ਬਸ ਵੱਸਦੇ ਸਾਹਿਬਾਂ ਦੇ ਵੀਰ !
ਹਰ ਆਸ਼ਿਕ਼ ਹੀ ਚੁੱਕੀ ਫਿਰਦਾ ਬਿਰਹੋ ਦੀ ਰੜਕ 'ਤੇ ਮੱਥੇ ਤੇ ਲਕੀਰ
ਅੱਜ ਤੇਰੇ ਗੀਤਾਂ ਤੇ ਕੌਣ ਬਹਾਵੇ ਨੀਰ !
ਨਜ਼ਮਾ ਤੇ ਪਾਬੰਦੀਆਂ, ਚੋਗੇ ਲੀਰੋ ਲੀਰ
ਆਹਂ ਭਰ ਕੇ ਪਰਤ ਗਾਏ ਸਭ ਗਾਲਿਬ ਸਭ ਮੀਰ !
ਨਾ ਲਭੀ ਤੇਰੀ ਮੁਹੱਬਤ, ਸਾਡੇ ਇਸ਼ਤਿਹਾਰ ਜਿਉਂ ਜੂ-ਏ-ਸ਼ੀਰ
ਲਿਖ ਲਿਖ ਵਗਾਈਆਂ ਨਹਿਰਾਂ, ਹੰਝੂ ਰੁਲ ਗਏ ਬਣ ਤਹਰੀਰ !
ਗਿੰਧਾਂ ਵਾਂਗ ਮਾਂਸ ਚੁੰਢੇਆ, ਸ਼ਿਕਰੇ ਹੋਏ ਇੰਝ ਹਕ਼ੀਰ
ਵਂਝਲੀ ਸਾਡੀ ਪਿਆਰ ਵਾਲੀ ਦਿੱਤੀ ਵਿਚੋਂ ਚੀਰ !

ਨੀਂਦ੍ਰ ਡੁਬੇਆ ਤੁੰ ਏਂ, ਸਾਨੂ ਸੁਪਨ ਵਿਖਾਵੇ ਤਕਦੀਰ
ਉਠ ਓਏ “ਸ਼ਿਵ” ਸੁੱਤੇਆ, ਅੱਜ ਕਰ ਕੋਈ ਤਕਰੀਰ !

ਤਕਰੀਰ – address, speech
ਜੂ-ਏ-ਸ਼ੀਰ - To Create A Canal Of Milk, To Perform An Impossible Task
ਤਹਰੀਰ - composition, writing

ਹਕ਼ੀਰ - to become wretched

मकई जैसे

ऐसे धड़कता तो यह रोज़ ही है
पर यूँ ही कभी कभी
फुट पड़ता है सुलगती राख पे मकई के दाने जैसे !

मुखोटा

जहाँ के सामने, अरमान कहाँ करवट ले पाते हैं
भूल चूक होने का डर ये एक दूसरे के सामने ही पाते हैं !
कैसे जाने के इन दोनो के मिज़ाज़, कुछ और हो जाते हैं,
जब एक दूसरे को सामने पाते हैं !
दुनिया का सामने तो इक मुखोटा ओढ़े रहते हैं,
एक दूसरे को गैर का चेहरा दिखाते झिझक सी दरमियाँ पाते हैं !

मुस्कुराहट

चंचल सी धूप सुबह की ढलती है ज़हन में
जब शाम की धुंध के साथ
बासी पड़ जाती हैं सुबह की नज़में
आहिस्ता से करवटें लेते हैं कुछ तसव्वुर
रात के
अलसाए से कोहरे में
और मंद-मंद रोते रहते हैं सूखे पत्ते
जैसे कोई नयी धुन लिख रहे हों
बाँध लेता है समय जीवन को आलिंगन में
ऐसे जैसे थम गई हो दूर कहीं नदिया की धार !
फिर जब अरमान लेते हैं अंगड़ाईआं
सुबह की साँस के धुएँ के साथ
तो सुलगती हैं कुछ यादें
आरज़ू के तंदूर में
जैसे कोई सेंक रहा हो आँसू अपने
के तपा के शायद मुस्कुराहट में बदल जाएं !
और फिर आफताब जब जलता है
तो बुझ जाती है वो नज़म और
बस इक तपश सी बाकी रह जाती है !

शायद कोई मुस्कुराने ही वाला था !!

घर

रोज़ आफताब की पहली किरण के साथ
मैं खिड़कियों से पर्दे हटा हटा देखती हूँ
के कोई किरण होगी जो
तुम्हारा अक्स बन के उतरेगी घर में !
यह घर अधूरा है तुम्हारे बिना !
तुम गये हो सरहद पे किसी ओर का घर बचाने !!
किसी ओर का घर उजाड़ने...

गुल्मोहर

ना-उम्मीदी सही, ख्वाब रु-ब-रू होंगे ज़रूर,
चाँद हो ना हो, झील के पानी रोशन होंगे ज़रूर !
कोई रोएगा यूँ तो, हँसेगे बहुत आज,
झड़ेंगे गुलाब तो गुल्मोहर भी खिलेंगे बहुत आज !

संभल संभाल

संभल के चलिए हज़ूर !
आप फिस्सले तो हम संभाल लेंगे !
गर हम फिस्सले तो फिर संभल ना पाईएगा !!

वो मैं, जो तेरी थी

वो मेरी निगाह की बेशर्मी, जो झुकती नहीं,
के कोई निगाह दिल्लगी अब कर पाती नहीं !
वो मेरी कमर की गरज, जो छटपटाती नहीं,
के कोई हथेलियां शरारत अब कर पाती नहीं !
वो मेरी ज़ुल्फों की ज़िद्द, जो फ़िज़ा में उड़ पाती नहीं,
के कोई उंगलियाँ झोंके सी इनमे सरसराती नहीं !
वो मेरे काँधे की रुखाई, जो चुन्नी फिस्सल पाती नहीं,
के कोई माथे से पसीने की बूँदें टपक पाती नहीं !
वो मेरी गर्दन का नखरा, जो सिरहन सी दौड़ती नहीं,
के कोई साँसों की गर्मी अब ज़बरदस्ती कर पाती नहीं
वो मेरे माथे की लकीरों की अकड़, जो सीधी होती नहीं,
के कोई होंठों की इन सिलवटों से कशमकश हो पाती नहीं !

बता ऐसा क्या राबता था तेरे साथ,
जो अब किसी की ज़रूरत होती नहीं !!

ਵਰਕੇ

ਵਰਕੇ ਫਾੜ ਫਾੜ ਸੁੱਟੇ ਯਾਦਾਂ ਦੇ,
ਏ ਸੱਧਰਾਂ ਦੇ ਵੈਨ ਗਿੱਧਾਂ ਵਾਂਗ ਮੇਰਾ ਮਾਸ ਟੁੱਕ ਗਏ !
ਲੋਕੀਂ ਔਣ ਡਹੇ ਦੁਖ ਵੰਡਣ ਮਾਰੇ,
ਹੰਝੂ ਅਣਖ ਦੇ ਮਾਰੇ ਬਣ ਬੈਠੇ ਮੇਹਮਾਨ, ਫੇਰਾ ਪੌਣੋ ਵੀ ਰੁੱਕ ਗਏ !
ਕੋਰੇ ਕਾਗਜ਼ ਤੇ ਸਿਰ੍ਫ ਸਿਰਨਾਵਾਂ ਬਣ ਕੇ ਰਹ ਗਿਆ,
ਜ਼ਹਨ ਚ ਸਾਹ ਬਾਕੀ ਨੇ, ਪਰ ਸ਼ਬਦ ਮੁੱਕ ਗਏ !
ਮੇਰੇ ਗੀਤਾਂ ਦਾ ਵਾਰਿਸ ਕੋਈ ਨੀ,
ਜਿਹੜੇ ਲਾਗੇ ਸੀ ਓ ਬਣ ਧੂਣੀ ਫੁੱਕ ਗਏ !

ਕਹੇ ਸੁੱਖੀ ਹਾਏ ਯਾਰ ਨਿਮਾਣਾ,
ਜਿਨਾਂ ਤੇ ਮੁਹੱਬਤਾਂ ਵਾਲੇ ਫਲ ਲਗਦੇ ਨੀ ਓਹੀ ਟਾਹਣ ਸੁੱਕ ਗਏ !!

माझी

(वो शख्स जिसका किनारा नहीं होता, जो नदी की तरह निरंतर है)

16 में से 16 आने आंसुओं का बोझ जब मेरे हिस्से दे दिया,
तो मैंने भी रोना सीख लिया !
के कश्ती ने जब लहरों के मुक़ाबिल होना छोड़ दिया,
तो माझी ने तैरना सीख लिया !

उधारी

किष्तों में भरपाई मुश्किल है,
कभी वस्सल का सबब बने तो अस्सल ले जाना !
रोज़ की सिसकियों से बेहतर है,
एक दिन अपने से दूर और खुद से मरासिम कर जाना !!
यह आँसुओं की उधारी यूँ तो बड़ी महँगी है !!!

धुँधला अक्स


रात के अंधेरे में भी,
जब एक हल्की सी लौ बाकी रहती है,
तुम थोड़ी “chubby” सी क्यों ना हो,
उस अध-जली रोशनी में,
खिड़की के काँच के पीछे,
तुम हसीं लगती हो !
तुम्हारा इक धुँधला सा अक्स ही बन पाता है,
मेरे ज़हन में,
जब बादल छुपा लेते हैं, आधा अक्स चाँद का,
तो मुझे तुम हसीं लगती हो !

फिर उतर जाती है धीरे धीरे तो मुझे लगता है,
के शायद वो पागलपन था जो नशे ने किया था !
और मैं सोच में पड़ जाता हूँ के “सच्ची मोहब्बत” किसे कहते हैं?
शायद शराब में अब वो कैफियत नहीं बची जो मुझे गुमराह कर सके !!

अतीत

लिखना चाहती हूँ अपने आँसुओ से तेरे आँसुओ तक का,
लिख देती हूँ अपने आँसुओ से तेरी हँसी तक का सफ़र !
ये रास्ते भी बड़े बेवफा से होते हैं,
एक बार छूट जाएं तो फिर नये ढूँडने पड़ते हैं !
और तुम सोचते हो के मैं अतीत में जी रही थी !!

तेरे आँसू

यह आँसू बहते हैं इस उम्मीद में
के एक दिन तेरे आँसुओं का सबब बनेंगे !
दरियाओं को बहा देता है सावन
समंदर में बाढ़ ला दे कोई ऐसी शिद्दत कहाँ !!

आख़िरी बार

समय भी ताक में रहता है बीतने की,
जो फ़रवरी के महीने दिन कम मिलते हैं !
इक जुदाई ही दायम है मेरे नसीब में,
वरना महीने तो और भी आएँगे !

यह मोहब्बत चीज़ ही ऐसी है,
आख़िरी बार होती है, पहली बार नहीं !!

पलकें

कुछ दिल का दर्द था जो रख दिया था
तुम्हारी पलकों पे मैने !
झपकी तो फिर उठी नहीं वो पलकें
जो उस बोझ तले दब गयीं थीं !!

परिंदे

परिंदो की शिकायत है के,
गीत नहीं सुनता मैं उनके आज कल !
कैसे समझाऊं के,
खामोशियाँ गैर लगती हैं मुझे अब,
और तन्हाई का सॅब्बब नहीं बनता !

खुद में ही किसी को पा गया हूँ !!

ਤੇਰੀਆਂ ਪੁਗਾਈਆ

ਤੇਰੇ ਨਾਲ ਲਾ ਲਈਆਂ ਯਾਰੀਆਂ ਨੀ,
ਕੁਝ ਮਿਠੀਆ ਤੇ ਬਹੁਤੀਆਂ ਫੋਕੀਆਂ !
ਭਾਵੇਂ ਸਾਨੂ ਜਾਂਚ ਨਹੀ ਸੀ ਨਿਭੌਣ ਦੀ,
ਤੇਰੀਆਂ ਸੁੱਕੀਆਂ ਵੀ ਅਸਾਂ ਹੰਜੂਆ ਚ ਸੀ ਸੋਕੀਆਂ !!

ਗੁੱਸੇ-ਗਿਲੇ ਤਾਂ ਹੰਡਾਅ ਲੇ ਸੀ ਕਿਸੇ ਤਰੀਕੇ,
ਤੇਰੀਆਂ ਪੁਗਾਈਆ ਝੱਲੀਆਂ ਨੇ ਬੜੇ ਔਖੇਆਂ !
ਸੱਚ ਕਿਹਾ ਬਾਈ, ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੀ ਪੈਂਡਾ ਮੁੱਕ ਜਾਂਦਾ,
ਇਸ਼ਕੇ ਦੀ ਵਾਟ ਨੀ ਨਿਭਦੀ ਸੋਖੇਆਂ !!

कैनवस

कैनवस पे पैंटिंग करते बहुत देखे थे
पर एक रंगरेज़ देखा जो रंग निचोड़
कैनवसें बनाता रहता था !
आख़िरी पड़ाव के लिए जैसे
चादरें इकठ्ठी कर रहा हो !
हर लिबास पे सफेद रंग यूँ पोत गया वो
के हर आईने में एक सी हो गई हूं !
मुर्दे ही मोल आंक सकेंगे मेरा
के अधूरा होना कोई ज़िंदा ज़िस्म कैसे जान सकता है?

फुलकारी

मां ने सर्दी की रातों में जाग जाग
एक फुलकारी बुनी थी !
जिसके एक कोने में
चुपके से मैने तुम्हारा नाम लिख दिया था !
पर अब सोचती हूं
के उसपे किसी ओर का नाम मढ़ दूं !
मोल देना है उन सपनों का
जो मां ने नही देखे, इस फुलकारी के लिए !
तुम्हारे नाम की तो मैने एक कोरी चादर संभाल रखी है !