'तुम'

रेडियो पे एक गीत चल रहा था - 'ज़िंदगी धूप तुम घना साया' !
मैं अभी तलक उस 'तुम' को ढून्ढ रहा हूँ !
ना जाने मेरे कितने 'तुम' गुम हो गए हैं,
'तुम' को ढूँढते हुए !
और कितना आसान था तुम्हारा 'तुम' ना रहना,
'तुम' आख़िर 'तुम' ही रहे !!

0 comments: