नमी

आज खुद की आखों पे वही हाथ नम से हैं,
जो कभी तेरे रुखसार पे रख के भीग गये थे !!

ज़रूरत

चलो तोड़ देते हैं उन आईनों को
जिनमे अक्स देखते हैं हम एक दूसरे का !
के जब तन्हाई का सबब बनेगा,
तो याद आएगी उस ज़माने की,
जब आईनों की ज़रूरत नही पड़ा करती थी !!


तब जब चेहरे ही नहीं, रूहें मिल जाती थी आखों में ही !!

बेमेल रिश्ते


मसलक तो बनाए ही गये थे सियासत के लिए,
यहाँ मोहब्बत भी होती है तो मतलब के लिए !
सूखे हुए पत्तों को करार मिलता है ज़मीन ही से मिल के,
ये बेमेल दोस्तियाँ होती ही हैं किसी मक़सद के लिए !!

थोड़े तेरे थोड़े मेरे


ज़फ़ा हो या वफ़ा, पर आंसू हों !
वफ़ा में, कुछ तेरे हों !!
ज़फ़ा में, कुछ मेरे हों !!

हिजर हो या वस्सल हो, पर आंसू हों !
वस्सल पे, बस तेरे हों !!
हिजर पे, बस मेरे हों !!

एहसान

अभी तलक सोच रहा हूं,
मैं एहसानमंद हूं तो किस चीज़ के लिए !
ये ज़िंदगी भर गुज़र गयी,
कोई क़र्ज़ उतारने के लिए !!

अल्फ़ाज़ बटोरता रहा हूं ता उमर,
किस तारूफ़ किस महफ़िल के लिए !
यूं यहाँ पे बने हैं सभी अपने,
मैं तरस गया हूं किसी का माथा चूमने के लिए !!

साँसें

कभी वो मुकाम भी आएगा,
जहाँ अपने ही दर्द को पराया कर दिया हो !
ऐसा हो जैसे तुम ने ग़ज़ल तो लिखी हो,
पर पन्ना फाड़ दिया हो !!

उस पन्ने पे कुछ साँसें हैं मेरी,
ठीक लगे तो तकिये के नीचे रख लेना !
मेरा आँचल भीगेगा तो यूँ लगेगा,
पल भर ही सही तुमने जैसे याद किया हो !!