अभी तलक सोच रहा हूं,
मैं एहसानमंद हूं तो किस चीज़ के लिए !
ये ज़िंदगी भर गुज़र गयी,
कोई क़र्ज़ उतारने के लिए !!
अल्फ़ाज़ बटोरता रहा हूं ता उमर,
किस तारूफ़ किस महफ़िल के लिए !
यूं यहाँ पे बने हैं सभी अपने,
मैं तरस गया हूं किसी का माथा चूमने के लिए !!
मैं एहसानमंद हूं तो किस चीज़ के लिए !
ये ज़िंदगी भर गुज़र गयी,
कोई क़र्ज़ उतारने के लिए !!
अल्फ़ाज़ बटोरता रहा हूं ता उमर,
किस तारूफ़ किस महफ़िल के लिए !
यूं यहाँ पे बने हैं सभी अपने,
मैं तरस गया हूं किसी का माथा चूमने के लिए !!
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