जो रह गया

खूँटी पे अपना हेअर-बैंड टाँग गयी...
तीखी सी हवा में झनक पायल की आवाज़ छोड़ गयी...
डायरी का सफ़ा जिसमे बुकमार्क छोड़ गयी...
शीशे पे टेस्ट की हुई लिपस्टिक की लकीर छोड़ गयी...
चाए की प्याली में ठंडी फूंक छोड़ गयी...
मेरे बिस्तर की सिलवटों में अपनी करवटें छोड़ गयी...

मैने सबके साथ जीना सीख लिया !

बस मेरे काँधे पे इक बाल छोड़ गयी थीं,
मेरी रातों को तो बस वही चुभता रहा है !

अंदर

भीगी तो मेरी रूह है पर मैं जिस्म से ज़हर निचोड़ता हूं !
मैं ऐसा ही हूं, पता नहीं क्यों,
जब अंदर देखना होता है तो खिड़की से बाहर देखता हूं !!

ठिकाने

सुना है राहें मुश्किल होती हैं मोहब्बत की,
मोहब्बतों ने वैसे भी कौन सा ठिकानों की चाह रखी है !

चोरी

घास पे पड़ी पंखुड़ी को उठा के टटोलना,
और झुकी नज़रों और बंद होठों से बेबाक इश्क़ की गवाही !

किसी की धड़कनें चुराना भी एक फन्न होता होगा !!

सुन, ओ यारा

गाल पे रखा हुआ हाथ
जैसे
रेगिस्तान की रेत का टीला,
और चड़ता हुआ दरिआ !

ज़हन के कोने में इक बात
जैसे
राख के नीचे सुलगता कोयला,
और भीगे गले से फूँकी हवा !

टकटकी लगाए आंखें
जैसे
इंतज़ार दुल्हन का,
घूंघट आड़े तमन्नाओं के !

सुन, ओ यारा !
सुन, ओ पीची !

अधूरा

यूं पहेले अधूरा होना पता नहीं था !
पर जब से तुम्हें गले लगाया है,
पूरा होना की चाह रहने लगी है !

जैसे के तुम मेरी प्रेरणा नहीं,
बल्कि मेरी ज़िंदगी हो !
मैं तुम्हें अपनी ज़िंदगी में ढालना नहीं चाहता,
बस जी लेना चाहता हूं !

ये बात फिल्मी लगती है; मगर यकीं करो, मैं पहली बार पूरा सच बोल रहा हूं !!

अपने अपने हिस्से

शाम की रोशनिओं को औढ़ा देना अपने दुपट्टे की छननी,
और चांद को कन्नी से बांध लेना !
चरागों के नीचे अधेंरे ज़ाया हों, उससे पहले अंधेरे को भी थोड़ा फुंक मार के सुलगा लेना !
आज सब रोशनिआं अपने हिस्से रखना !!

छाँव के टुकड़े

मैं छाँव के टुकड़े उठा के चल रहा हूं !
कोई छाँव मेरी सानी नहीं,
मैं किसी ओर के हिस्से की धूप ओड़े हुआ हूं !
टूटी हुईं आसानी से जुड़ती नहीं,
अपनी ही परछाईओं को जोड़ने से कतरा रहा हूं !
किसी शाम को मेरा इंतज़ार नहीं,
फिर भी सुबह से शब के फ़ासले तै किया हूं !
मेरा कोई वजूद नहीं,
मैं सायों में अपने अक्स ढूंड रहा हूं !

मेरे दिनों में कोई धूप नहीं,
कुछ छाँव के टुकड़े हैं, बस उन्हें उठा के चल रहा हूं !

वजन

किसी भी सितारे से पूछ लेना के रोशनीओं के राज़ दफ़न नहीं होते चंचल सी झीलों में,
कुछ हवाएं उड़ा ले जाती हैं सब छुपाई बातें और पीस देती हैं बूढ़ी माई के बालों वाली चक्की में,
और बन जाते हैं ख्वाबों के बादल अलसाई हुई नींदों में,
बादलों के गुच्छे सबूत दे जाएँगे के बारीशों में भीगने वाले खो जाया करते हैं अक्सर भीगी हवाओं की तरह !
रोशनियाँ नहीं नाप सका कोई भी, देखने को बस इतना भर के रोशनी है के नहीं !
तू भी बस इतना ही पूछना के मोहब्बत है के नहीं !

के कितनी है मोहब्बत?
सवाल में सिर्फ़ दर्द भरा है जिसके जवाब के आंसू बंजर धरती की तहों में छुप गये हैं !


तौलने से वजन कम क्यों हो जाता है प्रेम का,
इस बात की वजह ढूंढने निकले मेरे गीतों के दो बोल !!

साइड-किक

ये जो हीरो के साथ एक साइड-किक होता है ना, सब बखेड़ा उसी का खड़ा किया होता है !! हीरो को तूल यही देता है आशिक़ी में जल-फूंकने की; सैइडिस्ट कॅरक्टर होता है; पहेले हीरो को इश्क़ की खाई में धकेलता भी है फिर बचाता भी रहता है !

अगर यह कहानी के शुरू में ही हीरो के एक कॅंटाप रख के बोले के चूतियाप छोड़ दो, तो साला कहानी में ट्रॅजिडी होने की नौबत ही ना आए !!

ਓਸ ਝੱਲੀ ਕੁੜੀ ਦਿਆਂ ਬਾਤਾਂ


ਭੱਠੀ ਤੇ ਦਾਨੇਆਂ ਵਾਂਗ ਤਿੜਕਦੀ, ਓ ਫੜ ਫੜ ਹਸਦੀ ਜਦ !
ਕੱਚੀ ਛੱਤੀ ਦੀ ਚੁਗਾਠ ਚੌ ਪੈਂਦੀ, ਓ ਡੁੱਲ ਡੁੱਲ ਰੌਂਦੀ ਜਦ !
ਨਾ ਦਿਨ ਦੇਖਦੀ, ਨਾ ਸੋਚੇ ਰਾਤਾਂ, ਓ ਬਾਤਾਂ ਪੌਂਦੀ ਜਦ !
ਝੀਲਾਂ ਚ ਤਾਰੇਆਂ ਦੀਆਂ ਛਾਲਾਂ,
ਓਸ ਝੱਲੀ ਕੁੜੀ ਦਿਆਂ ਬਾਤਾਂ !!

ਬੰਨੇਰੇ ਤੇ ਪੈਲਾਂ ਪਾਵੇ, ਆਸਮਾਂ ਸਿਰ ਤੇ ਡੌਲਦੀ !
ਵਾਂਗ ਪੰਖੇਰੂੰ ਕੂਕੇ ਤੜਕੇ, ਧਰਤ ਤੇ ਦਿਨ ਰੌੜਦੀ !
ਅਖਾਂ ਦੀ ਰੜਕ, ਮਿੱਟੀ ਵਿਚੋਂ ਹੀਰੇ ਫੌਲਦੀ !
ਸ਼ੀਸ਼ੇ ਦੀ ਲਸ਼ਕੌਰ, ਤੇ ਧੁਪ ਚ ਛਾਂ,
ਓਸ ਝੱਲੀ ਕੁੜੀ ਦਿਆਂ ਬਾਤਾਂ !!

चलना

ज़िंदगी से होता चलूं या जी के चलूं या पीछे पीछे चलूं !
पीछे छोड़ जाऊं या पीछे छूट जाऊं या कहीं रह जाऊं !
चलना भी किसी के रह जाने की कहानी होगा !!

उंगली थामे

ज़िंदगी के उस पल के बाद वाले सारे पल
लगा
के किसी की उंगली थामे तै की हैं सब राहें !
मगर जाने क्यों
उस पल के बाद की सभी राहों में
तै करने लायक कुछ भी नहीं था !

तुमसे नज़दीकी वाले पलों की
छनती धूप
तुमसे दूरिओं वाले पलों की
छांव
का हिस्सा बन के रह गयी !
हमेशा के लिए ...

थोड़ा

कहीं खो जाना, तो थोड़ा मिल भी जाना !
कहीं चले जाना, तो थोड़ा सा रह भी जाना !

रात अपना बिस्तर समेट रही होगी
जब दिन आंखें मलते उठ बैठेगा
दोनों थोड़ा जगे थोड़ा सोए !
थोड़ा सा तो होते होंगे रु-ब-रु !!

निचोड़

उसने दीवार फांदी थी,
सिर्फ़ इसी लिए के,
वक़्त किसी के लिए रुकता नहीं,
फिर मौका मिले ना मिले अपने लिए कुछ करने का !

दीवारें उसके बाद ओर भी कई मिली फांदने को,
बड़ी दीवारें - स्माज की, कसौटीओं की, स्वाभिमान की !
मगर कहीं भी वैसा जादू ना था,
जो उस दिन 'सिर्फ़ एक संतरे' के लिए छोटी सी दीवार में था !

उसने जो भी किया,
उसमे 'अपने लिए' से कहीं ज़्यादा 'तुम्हारे लिए' था !

आज भी चली थी वैसी हवा,
और एक हादसा आज भी हुआ था,
जब हवा से उलझ गया था दुपट्टा !

उसके सारे हादसों का निचोड़ - तुम !

हाशिया

चादर को बना के डायरी का सफ़ा...
रात की स्याही से लिखी...
ठीक हाशिए पे अपनी कहानी...
ओ पीची, महीन सी एक सीधी सिलवट से तै की हुई हाशिए की हद...

गीली लकड़ी सी जलती रही हो मोहब्बत पूरी रात,
और राख सी उड़ा दी हो सब ज़िंदगियाँ !
जैसे किसी ने फूँक मार दी हो !!


आँखों में नींद से पहेले उस राख की जलन,
जीने के लिए काफ़ी है के नहीं ?

किस्से

ओ यारा, कोई तुमसे इतनी मोहब्बत कर ले,
के तुम्हे तुम्हारे ही क़िस्सों में से निचोड़ ले,
और रख ले अपनी पलकों तले !

के तुम्हारे किस्से नदिया की धार बिना अंत के !!

नाम का सीप

कुछ सीप तुम भी चुन लेना,
अपने मोती रखने को !
जब चलो मेरे साथ,
जिंदगी की रेत पर मोहब्बत के किनारे,
थोड़ी दूर !

फिर जब हम मिलेंगे दोबारा,
मैं बांटुगा तुम से कुछ मोती !
जो मुझे उसी रेत में मिले,
जो तुम छोड़ आई थी !

मैं माँगुगा तुम से अपने नाम का सीप,
और उसमें बंद तुम्हारा एक आंसू !

सांझ ले के

खामोशियाँ ले के चलते हैं, सन्नाटे नहीं,
चल सांझ ले के चलते हैं, अंधेरे नहीं !

मां की बनाई कल की सुखी रोटी पे नमक लगा के,
सवेरों के आगे आगे चलते हैं !
चल धूप पकड़ते हैं, परछाईंआं नहीं !

हथेलिओं से तकदीरें छीन कर,
दरियाओं जैसे टेढ़े मेढ़े सही, पर राह बनाते हैं !
चल लहरों की तरह टूटते हैं, पर बिखरते नहीं !

धुन्ध को चाँदनी के सहारे लाँघ लेंगे,
मजबूरिओं से दुआओं के साथ लड़ते हैं !
चल दिए हवाओं से जलाते हैं, माचिसों से नहीं !

चल सांझ ले के चलते हैं, अंधेरे नहीं !

ਗੱਠਾਂ

ਤੇਰੀਆਂ ਸੱਧਰਾਂ ਤੇ ਮੇਰੀਆਂ ਖ੍ਵਾਹਿਸ਼ਾਂ,
ਏ ਸੂਈ ਚ ਪਾਏ ਧਾਗੇ ਨੇ !
ਮੇਰੇ ਮੋਢੇ ਤੇ ਤੇਰੀਆਂ ਬਾਹਵਾਂ,
ਬਸ ਬੋਹੜ ਤੇ ਬੰਨੀਆਂ ਲੀਰਾਂ ਨੇ !
ਤੇਰੀ ਜ਼ੁਲਫਾਂ ਚ ਮੇਰੀਆਂ ਉਂਗਲਾਂ,
ਤੇਰੇ ਹੱਥ ਤੇ ਬੰਨੀ ਖ਼ਮਣੀ ਏ !
ਸੱਟਾਂ ਤੇ ਤੇਰੀਆਂ ਗਰਮ ਫੂਕਾਂ,
ਮੇਰੀ ਬਾਂਹ ਤੇ ਬੰਨੀ ਤਵੀਤਰੀ ਏ !


ਏ ਕੱਲੇ ਕੱਲੇ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਤੇ ਕੱਠੇ ਕੱਠੇ ਦੀਆਂ ਬਾਤਾਂ !
ਏਹੀ ਬਸ ਬਚਿਆਂ ਖੁਚੀਆਂ ਯਾਦਾਂ ਨੇ,
ਜੋ ਆਪਣੇ ਫੇਰੇਆਂ ਚ ਪਈਆਂ ਗੱਠਾਂ ਨੇ !

गयी रात

कुछ रातें बिन नींद ज़ाया हो जाती हैं,
मगर बहुत कुछ छोड़ जाती हैं !

कोयल ने आवाज़ दी तब तक सोने की सोचता रहा हूं गयी रात !!

चोरी चोरी

चोरी चोरी आँखें लगा लो तो,
आँख नहीं लगती, यारा !

ओ झल्ली, तू भी तो जगी थी कभी किसी के लिए !
तेरी नींद उड़ाने वाले सबब ही तो टोह रहे हैं उसके नैनां !!

टीस थी मोहब्बत को बस इतनी,
के तुम छुपती रही,
और वो छुपाता रहा !

The winner

The war has always been between pride and pennies. Without fail, it is the winner which had pride on its side.

मुश्किल

पता नहीं क्यूं मुश्किल होता है लिखना,
उसे गले लगाने वाला पल !
और काग़ज़ भरे पड़े हैं,
उसके बाद और उसके पहेले वाली ज़िंदगी से !!

शिकन

लकीरों पे अपनी मर्ज़ी का कुछ ऐसा कुरेद देना, जो फिर उम्र भर ना मिटे !
इससे पहेले के,
हाथों की लकीरें, माथे की शिकन बन जाएं !!

happy journey

मेरी कबर पे लिखना, एक था जो जिया था !
'happy journey' ना भी हो, जीवन का सफ़र तै करने में मज़ा तो है !!

अपना कुछ

उस झल्ली लड़की से पूछना,
कैसा लगता है, दुनिया से पराया ना हो के,
उस झल्ले लड़के को पराया कर देना !
किसने चाहा है कभी ये समझना के,
अपनों की कमी क्या होती है...

यूं उस झल्ले लड़के का अपना कुछ था भी नहीं !
नहीं, वो झल्ली भी नहीं !!

किस्से अधूरे

आज तो समंदर भी बड़ा परेशान है,
उसकी रगों में भी शायद जुदाई वाली कोई नदी बहने लगी है !
बादल खुद बड़ा प्यासा सा है,
वो भी शायद विछोड़े के किसी रेगिस्तान में निचुड़ के आया है !
हवा को आज रेत के दाने भी भारी,
शायद अपने पिआ पहाड़ से लड़ के थकी आई है !

यारा, कुछ ओर हो ना हो,
गुल्मोहर ढूंड लेना बस, इक वो ही तो खिला खिला सा रहता है !

और लिख लेना सब किस्से अधूरे उसकी महकी छाँव में !!

बँधा हुआ

मुझे पता नहीं के खींच के तोड़ी गयी में,
गांठ बँध जाती है या नहीं !
अगर ऐसा हो पाता है तो,
यारा, उस पायल में गाँठ बाँध लेना !

बँधा हुआ अब ओर कुछ भी बचा नहीं है;
सिवाए साँसों और घड़ी की सुईओं के !!

बाँटना

मेरी सारी कविताएं,
पानी से भरा हुआ बादल !
ओ हवाओ, कभी वक़्त लगे तो,
मेरी पलकों के नीचे से गुज़रना,
इन्हें दूर दूर तक उड़ा ले जाना,
और बरसा देना घनी आबादिओं में
सुना है, बाँटने से दर्द कम होते हैं !!

बिरहनों के लिए

बचपन में मैं अक्सर सोचता था,
के हम बारिश के वक़्त ही काग़ज़ की कश्ती क्यों बनाते हैं,
या खाली पीरियड में ही काग़ज़ के जहाज़ क्यों बनाते हैं,
पर फिर उम्र के साथ साथ ये मान लिया के,
हर चीज़ का अपना वक़्त और जगह मुकरर होता है !

जैसे बिरहन का...

मुझे लगता है स्टेशन बिरहनों के लिए ही बनाई जगह है,
और गाड़ी का छूटना वो समय !
मैं प्लॅटफॉर्म पे खड़ा,
तकता गुज़रती खिड़कीों को,
और हर खिड़की में से तुम्हारा झँकता चेहरा !!

उस साल की बारिश

अभी ख्वाबों ने गये दिनों का किवाड़ खोला ही था,
झरोखे में से चाँदनी ने पायल की खनक सी दस्तक दी !
खिड़की में से देखा तो चाँद के इर्द गिर्द,
दो सितारे तुम्हारी तरह ही आँखें मलते उठ बैठे !
ये अभी अपनी अलसाई पलकें झपक ही रहे थे,
उधर कोने में दो सितारे छुपन छुपाई खेलने लगे !
इधर एक शर्मिला सा सितारा अपने में ही सिमटा,
बादल के पीछे छुपने की कोशिश कर रहा है !
चाँद के देखते देखते ही,
दो बादल आपस में ही लड़ दिए !


फिर,
बहते आँसुओं जैसे टूटते सितारे !!

उस साल की बारिश अभी भी रोज़ होती है !!

लंबे सफ़र

वो बुरका पहने हुए लड़की,
church की बाहर वाली दीवार के झरोखें में से,
रोज़ prayer होता देखती रहती !
मुझे लगता जैसे कोई कोयल,
कौए के घोंसले में बसने का बहाना कर रही हो !
फिर मालूम पड़ा उसका महबूब catholic है !


और वो समझना चाहती है के,
आयत से verse तक का सफ़र कितना लंबा है !

एक कप चाय

सर्दिओं का अलसाया सा इतवार,
और इतवार की कोहरे भरी दोपहरी !
दवात में पेन की डुब्बक,
और चूल्‍हे पे बर्तन चड़ाने की खनक !
उंगलिओं में पत्ती के दानों का एहसास,
और मोहब्बत का रूह से उंगलिओं तक का सफ़र !
हर दाने का पानी की लहरों में अपना रंग भरना,
और ईज़ल पे टिकी कैनवस से काग़ज़ों के पैड का फड़फड़ाना !
बेलन से लौंग-इलायची को पीस के छिड़कना,
और मोहब्बत के सब मंज़रों को घोलते पेन के स्ट्रोक्स !
कतरा कतरा घुलता अदरक का तीखा,
और काग़ज़ पे तंज़ कसती निब की धार !
तुलसी की पत्ती की गीली सी खुश्बू,
और स्याही से ज़िंदगी पाते शब्दों का स्वाद !
अंत में दूध से धुलता सारा रंग,
और धूप के इंतज़ार में हवा से करवट लेते शब्द !
फिर सब नितार लिया छननी से,
और उड़ेल दी मोहब्बत कोरे काग़ज़ों पे !

एक कप मसालेदार चाय आज फिर काग़ज़ पे एक मोहब्बत ज़िंदा कर गयी !
मगर मेरे वजूद में छननी में बची हुई ज़ाया चाय-पत्ती सी,
मोहब्बत बाकी रह जाती है !!

सपने

सुनो !

मेरे होठों पे तिन नहीं है,
पर मेरी ठोडी पे मस्सा है !

मेरी ज़ूलफें भी कोई रात या कोई घटा नहीं,
बस मेरी ही उलझनें हैं !

मेरी उंगलिओन में सर्दी वाली धूप सी गर्मी नहीं,
बस मेरे गुनाहों की टेढ़ी मेढी कहानियाँ हैं !

मेरी आँखें कोई झील या कोई समंदर नहीं,
बस मेरे ही सपने तैरते हैं !


मेरे सपने, जो मैने अपनी नींदो में से खंगाले हैं !
बाँटोगे इन्हें कुछ अपने सपनों से?
 


जब रात अपना बिस्तर बिछा लिया करेगी दुनिया की आँखों में,
हमारी आँखें उठ के खेला करेंगी छुपन-छुपाई !
वादा तो नहीं, कोशिश रहेगी ...

बहाने

थोड़ी देर की छत के नीचे बारिश की तरफ मेरा पीठ कर तुमको छुपाना,
असल में भीगी लटों से उलझे तुम्हारे भीगे रुख़ को निहारने का बहाना ही तो है !

या फिर चाँद की तरफ उंगली से इशारा करके तुमको कोई कविता सुनाना,
असल में चाँदनी में तुम्हारे चेहरे को तकने का बहाना ही तो है !

किसी दूसरी लड़की को देर तक तकना पर कनखिओं से तुम्हें भाँपना,
असल में तुमसे शरारत का बहाना ही तो है !


सब बहाने हैं, खुद ही को तुमसे मोहब्बत होने का सबूत देने के !!

Phase

Have entered that phase of single-hood, when even tinder refuses to install on your phone...

मुश्किल

इतना मुश्किल था नहीं, उसे भूल जाना !
यूं तो इतना मुश्किल था नहीं उसका मेरी यादों में जगह भी रख लेना !!

वक़्त का टुकड़ा

जिस वक़्त से तुमने आख़िरी बार दहलीज़ लाँघी थी,
घड़ी की सुइयाँ 12.10 के उस अटपटे वक़्त पे रुक गयी !
आज बहुत महीनों बाद इक शख्स ने,
तुम्हारे इसी घर में कदम रखे,
तो घड़ी की सुइयाँ वहीं से चलने लगी,
जैसे के घर को तुम्हारी बदल मिल गयी हो !


समय तो फिर से चल निकला,
बस वो महीने एक बेमाना सा वक़्त का टुकड़ा हो रह गये !

समय बदल जाता है मगर अक्सर पैबंद रह जाते है,
वैसे नंगे वक़्त के टुकड़ों पे !!

तुम

ज़हीन सी उस बच्ची के लिए,
बूढ़ी माई के बाल अच्छे या बुरे नहीं थे,
उसमे कुछ पाना या खोना, जीतना या हारना नहीं था,
उसके लिए बूढ़ी माई के बाल का उसके पास होना बस काफ़ी था !
इसी लिए अप्पा को उस दिन वो समझा ना पाई थी के कैसे लगे वो उसको !
क्योंके उस नन्हे से मन में काबिलियत नहीं होती,
मोहब्बत को शब्दों के हेर फेर में डालने की !


जैसे के मुझमे भी नहीं थी,
यारा, मेरे लिए तुम बस तुम थी !!

तकरीबन तकरीबन

उसे लगता है मोहब्बत करना तकरीबन तकरीबन आता है उसको; जैसा के तकरीबन सभी ही को आता है । पर जब भी वो किसी को टूट के मोहब्बत करना चाहता तो साली ज़िन्दगी आड़े आ जाती है। कभी महत्वाकांक्षाएं, तो कभी इच्छाएं, तो कभी कोई डर या फिर झिझक! वो अभिमन्यु की ही तरह मोहब्बत के चक्रव्यूह में घुस तो जाता है पर इसे हल करके आगे कैसे बढ़े, समझ नहीं आता। उसकी ही तरह पता नहीं तकरीबन तकरीबन हम सभी फेल क्यों हो जाते हैं इस सरल से काम में!

यारा, मैं सोचता हूँ अगर ये ज़िन्दगी ना होती तो शायद हम मोहब्बत तो कम से कम सही से कर पाते। इसी लिए तो शायद सब आशिक़ मौत के बाद वाले किसी जहां में जा के ही अपना इश्क़ परवान कर पाते हैं; चाहे किसी को भी ले लो हीर-रांझा, सोहनी-महिवाल या कोई ओर...

जिन्दगीआं तो शायद मिलती हैं सिर्फ़ आग़ाज़ को, अंजाम के लिए बने हैं दूसरे जहाँ।

मियाद

तुमसे अच्छी तो भला रात ठहरी, सवेरे के इंतज़ार की मियाद तो तै है...

रात

सूरज सर चढ़ते ही ज़िन्दगी से लड़ाई शुरू हो जाती है, और उधर चाँद सर पे आ के मिला देता है ज़िन्दगी से फिर से । इस समय को रात की जवानी कहूं या ढलती उम्र कहूं ! आसान सवाल भी कभी कभी कितना उलझा जाते हैं चंचल मन को...
रात बाकी है कुछ, कुछ बीत गयी; मगर गुफ्तगूं पूरी बाकी। कुछ जवाब सवालों की टोह में तो कुछ सवाल जवाबों की टोह में ।

सब सवाल ढलती उम्र के और जवाब जवां अभी...

धार

उंगलिओं को काटने के लिए तलवार ज़रूरी नहीं होती,
तीखे काग़ज़ भी घाव कर जाते हैं !

कुछ लड़ाईओं में ज़रूरत,
खून से ज़्यादा स्याही की होती है !

क़लम की धार तेज़ कर लेना,
जंग आज कल तलवारों से नहीं,
दूसरे रंग की स्याहीओं से होती है !!

इंतज़ार

इंतज़ार की कोई लंबाई तय नहीं होती !
इक बेल की तरह बढ़ता जाता है,
जब तक के जड़ से काट ना दो !!

कभी कभी इंतज़ार बरगद की तरह,
पूरी ज़िंदगी में फैल जाता है !
और गाड़ देता है अपनी जड़ें हर पहलू में !!

मौसमों से लड़ाई

कैंटीन में बैठे बैठे बेंच पे तुम्हारा नाम लिखा था,
और पीपल के एक जर्द पत्ते से ढँक दिया था, जब तुम आई !
चाए पीते पीते तुमने कहा था,
जल्द ही पतझढ़ के बाद पीपल पे नयी कोंपलें और नये सुरख पत्ते आएंगे,
जिनकी खुश्बू तुम्हे गीली मिट्टी की खुश्बू से भी ज़्यादा प्यारी है !


मुझे पक्का पता तो नहीं पर मान लेता हूं के,
आज भी अकेले में किसी का इंतज़ार करते हुए,
कॉफी पीते पीते तुम भी अपने नाखूनों से नैपकिन पे मेरा नाम कुरेदती होगी !


ज़्यादा कुछ नहीं बदला,
बस पीपल के सुरख पत्ते हरे हो गये हैं, मौसमों से लड़ते लड़ते !!

बहाना

"चलोगी मेरे साथ?", उस अभागे ने बस इतना ही पूछा था| और उसने जवाब देने में कुछ पल खर्च कर दिए और जवाब दिया भी नहीं; मगर पूछा, "कहां?"
इतना काफ़ी होता है कहीं भी ना जाने के बहाने के लिए...

गर चल दिए होते तो कहीं ना कहीं तो पहुंच ही जाते...

भगत को ईलम होता बँटवारे का तो...

मुझे लगता है भगत सिंह ने 1929 में अस्सेम्बलि में बंब फोड़ने के बाद हरगिज़ गिरफत्तारी ना दी होती अगर उसे ज़रा सा भी ईलम होता के एक दिन उसके शहीदी समारक के लिए भी 12 गांव के बँटवारे किए जाएंगे|
उसने हरगिज़ गिरफत्तारी ना दी होती, गर उसे इस बात का ज़रा सी अंदाज़ा होता के एक दिन राजनीतिक महत्तवकांशाएं रखने वाले चन्द लोग देश के साथ इतना बड़ा खिलवाड़ कर जाएंगे के देश के दो टुकड़े हो जाएंगे और फिर आगे जा के जब वो भी कम लगेगा तो तीन टुकड़े कर देंगे|
उसने हरगिज़ गिरफत्तारी ना दी होती, गर उसे इस बात का ज़रा सी अंदाज़ा होता के एक दिन जिन खेतों में पीली सरसों देखा करता था वहाँ लाशों के ढेर लगेंगे, जिन कुओं में से पानी भरा करती थी उसकी बहनें वहाँ पे उनको अपनी इज़्ज़त बचाने के रास्ते दिखेंगे, जिन हवेलिओं में तीओं के त्योहार होते थे वो सब खंडहर बन जाएंगे|

"टोबा टेक सिंह" की कहानी याद है ना, यारा! हुस्सैनीवाला सरहद की तरह, "बिशन सिंह" को भी अंत में तारों के बीच में अपना गांव मिल पाया| आज भी कुछ हिस्से बदलते रहते हैं. कभी ये "2 किलोमीटर" पाकिस्तान के तो कभी ये "1 किलो मीटर" हिन्दुस्तान के| बेचारे "मंटो" को तो "enclave" का विचार ही नहीं था, वरना वो कलम से स्याही नहीं खून उगल देता उन बेचारों के नाम जिनको २-२ देशों ने अपना बना के भी गैर करार दे दिया, मगर अपनाया किसी ने नहीं| ज़मीनों और लोगों के बँटवारे तो किए ही, हम लोगों ने शहीदों और स्मारकों के भी बँटवारे कर लिए|

मुझे विश्वास नहीं यकीन है के उस दिन भगत को ज़रा भी ईलम होता तो वो अपने आप को ज़िंदा रखता 1947 तक| अँग्रेज़ों से लड़ने के लिए नहीं, अपने ही लोगों की महत्तवकांशाओं से लड़ने के लिए वो ज़रूर ज़िंदा रहता|

आज हम लोग उन्हीं जैसे कुछ राजनीतिक महत्तवकांशाईओं में अपने अपने "भगत सिंह" ढूंढते हैं और खोखले "इंक़लाब" के नारों से दिलों को तस्सली दे लिया करते हैं !!!

बोझ

आंखें चीखती हैं के कोई रोक ले मुझे !
मगर ज़ुबान फिर भी एक प्यार भरी अलविदा कहने को नहीं हिचकिचाती,
और होंठ एक मुस्कुराहट का बोझ लाद देते हैं खुद ही पे !!

थकी सी ज़िंदगियाँ

कुछ तो है यहां जो हर शख्स थका थका सा है !

बादलों को छत नहीं है सर पे,
आसमान आज कल दिखता ही नहीं !
सूरज दिन ढलने से पहले ही डूब जाता है,
शामों में सुरख रंग भरता ही नहीं !
रात रोशन करते हैं सब सितारे,
चाँद किसी की पाजेब बन के चमकता ही नहीं !


मंदिरों के दरवाज़े भी रातों को बंद हो जाते हैं,
दिन ढलने बाद वो भी फर्याद सुनता नहीं !!

इतफ़ाकन मुलाक़ातें

यूं कभी मोहब्बत नहीं थी उससे मगर उसने हमेशा यही चाहा था के गिल्लू का उसके प्रति मोह भंग हो जाए| वो उससे मिलने के बाद आज अपने संसार लौट तो आई, पर आज कुछ भी अपना नहीं लग रहा था| लग रहा था के कहीं ना कहीं उसका कुछ हिस्सा गिल्लू के पास छूट गया हो| आज इतने सालों बाद!

वो आज भी वैसा ही दुबला सा आवारा लड़का मालूम होता था| उसके चेहरे पे जो मुस्कान आ टिकी थी, वो वैसी मुस्कान नहीं थी जिसके पीछे गम छुपा होता है| फिर भी रह रह कर वो बेचैन हो रही थी के गिल्लू आज कल खुश है या नहीं| कॉलेज के बाद उसको कई बार ये भी लगा के शायद वो भी उससे प्रेम तो करती थी, मगर किसी वजह से वो हां नहीं कर पाई| और ना करने का तो उसने मौका ही नहीं दिया कभी| शायद उसने अपनी ज़िंदगी के हमसफ़र की एक संपूरण प्रतिमा पहेले से बना रखी थी, जिससे गिल्लू बिल्कुल भी मेल नहीं ख़ाता था|

इतफ़ाकन हुई मुलाक़ातें हमेशा वो सब याद करवा जाती हैं जो हम यादों के ढेर से भी बाहर निकाल के रख छोड़ते हैं!

स्टेशन

स्टेशन पे जाने को एक ने विदाएगी बना लिया,
एक ने किस्मत बना लिया और एक ने मंज़िल बना लिया !

मैने ज़िंदगी भर की एक याद बना ली,
और उन दोनो ने ज़िंदगी भर का काम बना लिया !!

टपरी पे चाय

कुछ JNU, TISS, HCU बनाने में लगे हैं, कुछ UPA, NDA बनाने में लगे हैं...
कुछ election का टिकेट जुगाड़ने में लगे हैं, तो कुछ TRP बढ़ाने में लगे हैं...
कुछ सरहद पे मर मिटने को तैयार हैं, तो कुछ अंदर मारने मिटाने को तैयार हैं...
कुछ अन्न उपजाने को संघर्ष कर रहे हैं, तो कुछ टेबल पर काग़ज़ सरका टेबल के नीचे पैसा बना रहे हैं... 

बाकी जो बच गये ना तेरे मेरे जैसे, यारा, कल फिर टपरी पे खड़े सोचेंगे इन सबके बारे में


|| टपरी पे चाय ||
टपरी पे सिर्फ़ चाय नहीं होती !
कुछ शक्कर सी नज़दीकियां भी होती हैं,
तो बिस्किट के साथ साथ कुछ यादें भी डुबोई होती हैं !
गरम भाप के साथ मन की कुछ भढ़ास भी होती है,
और कुछ अदर्क सी तीखी बातें भी होती हैं !
कुछ छाननी जैसे खवाब भी बुन ले जाते हैं,
तो कुछ काँच से टूट के खुद को चुभ भी जाते हैं !
कभी कीमाम की खुश्बू सी ज़िंदगी भर की याद भी बन जाती है,
कभी सुट्टे जैसे ज़िंदगी भर की लगाई भी गले पड़ जाती है !


सब होता है,
बस टपरिओं पे लाल या हरा या भगवा रंग नहीं होता...

lemons

When life gives you lemons, grab two mirchis and a thread; hang nimboo-mirchi on your bike.
.
Because no road of life is tough when you got a bike.

खामोशी

समंदर के किनारे नरम रेत पर,
सूखे पत्तों का बिछौना बना के,
कुछ देर लेट के,
सितारों को निहारते हुए,
खुद के दिल की धड़कनें सुनना !

खामोशी कभी कभी चुभ भी जाती है !!

फासला

फासला "ना" का बनाया नहीं था,
बस इक "हां" भर का फासला रह गया दरमियाँ !
सोचना, कभी वक़्त मिले, ज़िंदगियाँ क्यूं बदल जाती हैं मगर इंसान वही के वही !!

रात

मेरी हर रात में घुली हुई हैं सब रोशनियां उस दिन की,
वो मुझे छोड़ जाएगी उस वक़्त जब मैं छोड़ जाऊंगा खुद ही को !
ओर कोई रास्ता नही रात बदलने का !!

theories

Einstein ने की होती मोहब्बत तो शायद समझ पाता...
सूरज डूबता है विसाल की खातिर और चाँद की चाँदनी हिज़र का सहारा...
.
.
Gravitational field आदि सब कच्चे मन की theories

साथी

दिन भर साथी रहा 14 फरवरी को जो,
15 की सुबह टिंडर पे दिखा...
.
.
शिकारी दोमुंहा, शिकार दोमुंहा...

बैंगलोर की ज़िदंगी

ज़िदंगी का सफर, जैसे बैंगलोर की गलियों में सपीड ब्रेकरज़ से जुझना...

गहना

मैंने दी थी पाजेब,
उसपे सुहाता था टिक्का...

सफ़र

लंबे सफ़र की लकीर हाथों में बहुत छोटी...
हमसफ़र वाली लकीर खुद ही को टोकती काटती...

कोना

चाँद भी खिड़की के कोने में...
जैसे तुम के ज़िंदगी में नही, ज़िंदगी के किसी कोने में हमेशा...

दरवाज़ा

एक बार ज़िंदगी ने उसके दरवाज़े पे खट-खटाया भी था,
पर फिर कदम पीछे हटा लिए थे, उसी आवेग से जैसे बढ़ाए थे !

फनकार

सिगरेट के छल्ले उड़ाती तन्हाईयां,
विस्की के छोटे छोटे घूंट लेती बेचैनियाँ,
चाए की चुस्कियां लेती सर्दियाँ,
और छत्त पे सितारों के नीचे लेटी गर्मियाँ,
अक्सर दे जाती हैं जनम ना जाने कितने फनकारों को !

और
जाने कितने फनकार मरते हैं ऊँचे ए.सी. ओफिसों में लॅपटॉप्स के सामने !!

शामिल

वो जो संदूकड़ी में बात पड़ी है अभी तलक,
उसे निकाल के खंगाल लेना अपने आँसुओं में,
और सुनहरी धूप में सूखा लेना !
उस भीग के सूखी हुई बात को,
फुलकारी बना ओढ़ लेना इस रात,
और कर लेना शामिल मुझे भी कहीं,
पार्ट 2 में !!

आज़ाद

मैं किनारों में बंधा दरिया हूं,
मुझे बे-किनारा कैसे करोगे !

तुम समंदर हो, मसिहा नहीं,
तुम मुझे आज़ाद कैसे करोगे !!

इतिहास

मैने सब लिखा है फिर मिटाने को,
यूँ ही बस इश्क़ है, कोई वजह नहीं !
इतिहास बनाने को वजह और नतीजे चाहिए होते हैं !
इश्क़ नहीं !!

सिलसिले

वो दीवार तोड़ गया, मगर नीहें डाल गया !
मैने ग्लास तोड़ दिया फिर, मगर सिलसिले जोड़ गया !!

कविताएं

मुझे रब्ब नहीं मिलता कहीं अपनी कविताओं में,
वो सदाएं ढूंढ लेते हैं !
मुझे दर्द नहीं मिलता कहीं अपनी कविताओं में,
वो दर्द के सबब ढूंढ लेते हैं !
मुझे शब्द नहीं मिलते कहीं अपनी कविताओं में,
वो अर्थ ढूंढ लेते हैं !

देर आना

कितने ख्वाब उधेड़े हैं मैने, दो चार सिक्कों के बदले,
और ख्वाब सिलने वाले उस दर्जी ने शहर बदल लिया !

यूं भी कभी कभी देर आना दरुस्सत आना तो नहीं होता !

खाली ग्लास

उसकी फिल्टर कॉफी और मेरी अदरकी चाए की,
महकें मिल जाएं,
जैसे दरिया और समंदर मिल जाएं,
के बिखर गए हों गले मिल के !

पीची, देखना, बस फिर किस्से ही मिलेंगे खाली ग्लासों में !!

जोकर

ज़िंदगी अक्सर रखती है हुकुम का इक्का अपने पास तुम्हारे जोकर का जवाब में...
इक ग़लत खेला जोकर चड़ा जाता है उम्र भर की बाज़ी...

मझधार

बीच मझधार में तिनका मिले तो कस के पकड़ लेना,
और फिर लड़ लेना लहरों से !
किनारे अभी दूर हैं !!

कलेंडर

चाहतों में राहतें नहीं होतीं !
इश्क़ की वजह नहीं होती !
ठिकानों के पते नहीं होते !
समंदरों की मझधार नहीं होती !

धड़कनों की तारीख नहीं होती,
मगर कलेंडर बदलते हैं दिलों के !!

समय

समय के हुकमरानों से चाहे पूछ लेना,
मेरे सब लफ्ज़ बेलम्हा !
ज़िंदगी उधेड़ते लम्हा लम्हा !!

कोरे काग़ज़

सब इरादे एक कोरे काग़ज़ पे लिख के,
जला देना !
और राख को मुठ्ठी में भींच के रख लेना !
अपने ना होने का एहसास मिलता रहेगा लकीरों में !!

लफ्ज़

ज़िंदगी ने वक़्त तो भर दिया,
मगर मन सिर्फ़ लफ्ज़ ही भर पाते हैं !
आज इक ओर ताना-बाना बुनने जी चला,
वक़्त में से थोड़ी ज़िंदगी काट के !

शायद, थोड़ी साँसे जोड़ने !!

आवारगी

कहीं खो गया हूं मैं,
तू ढूंड ले मुझे !
पहाड़ों से बर्फ पिघले,
तो आवारगी की आग बुझे !

मैं हीर तलाश में,
कोई रांझे की बांसुरी बना दे तुझे !
इक फटफटिया सी मिल जाए बस,
तो शिद्दत वाला कोई लफ्ज़ सुझे !

खिंचती डोर

ओ पीची,
सुनो, ये जो डोर बांध रखी है,
पायल से तुमने मेरी उंगलिओं तलक,
उससे खिंचता तो रहा हूँ अब तलक !
मगर ये भी सोचो,
डोर तोड़नी होगी, पायल लौटानी होगी !
मुझे किसी नये को पहनानी होगी,
तुमको कोई नयी पहननी होगी !

ਗੱਡੀਆਂ ਵਾਲੇ

ਗੱਡੀਆਂ ਵਾਲੇਆਂ ਨੂੰ ਠਿਕਾਨੇਆਂ ਦਾ ਮੋਹ ਹੀ ਨਹੀਂ,
ਧਰਤ ਦਾ ਛਿੱਲ ਛਿੱਲ ਖੂਨ ਸੁੱਕਿਆ !
ਤੜਕੇ ਦਾ ਗਿਆ, ਓਹਦੇ ਪਰਤਨ ਦਾ ਨਾਮ ਹੀ ਨਹੀਂ,
ਸੂਰਜ ਦਾ ਤਪ ਤਪ ਮੁੜਕਾ ਡਿੱਗਿਆ !
ਤੈਨੂ ਭੇਜੇ ਸੁਨਿਹੇਆਂ ਦੇ ਜਵਾਬ ਹੀ ਨਹੀਂ,
ਹਵਾਵਾਂ ਦਾ ਸਿੱਲ ਸਿੱਲ ਸਾਹ ਰੁਕਿਆ !


ਰਾਤਾਂ ਹੰਝੂਆਂ ਦੇ ਬੰਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀਆਂ, ਯਾਰਾ,
ਚੰਨ ਦਾ ਜਗ ਜਗ ਦਾਗ ਮਿਟਿਆ !

चांद जैसी

तू चांद जैसी मत बनना !
चांद तो सजता है लाखों के लिए,
तू कभी मत सजना किसी ओर के लिए !

मोहब्बत में मुझे बस ये इक इख्तिआर दे जाना !!

सवालिया

खामोशीओं में शब्द नहीं होते मगर शोर होता है !
आँखों में नदियाँ नहीं होती मगर बहती हैं !
लकीरों के दाँत नहीं होते मगर काटती हैं !
रास्तों के पैर नहीं होते मगर चलते हैं !

तस्वीरों से कोई सवाल नहीं पूछता,
मगर जवाब देती हैं !!
और कुछ जवाब छोड़ जाते हैं सवालिया निशाँ किसी गुज़रे हुए लम्हे पर !!

कितना आसां हो

कितना आसां हो जाता सब गर तुमने पीछे पलट के देखा होता !
कितना आसां हो जाता सब गर तुमने बाहों में भर लिया होता !

मुश्किल बस लम्हे होते हैं, ज़िंदगियाँ आसां,
मगर खो जाती हैं ज़िंदगियाँ लम्हों को आसां करने की दौड़ में !!

उमर

पता नहीं क्यों उमर गुज़ार दी,
दिन-के-बाद-रात, रात-के-बाद-दिन के चक्कर में !
और पता नहीं कब ख़तम होगी समय की जद्द-ओ-जहद मेरे साथ !!