थकी सी ज़िंदगियाँ

कुछ तो है यहां जो हर शख्स थका थका सा है !

बादलों को छत नहीं है सर पे,
आसमान आज कल दिखता ही नहीं !
सूरज दिन ढलने से पहले ही डूब जाता है,
शामों में सुरख रंग भरता ही नहीं !
रात रोशन करते हैं सब सितारे,
चाँद किसी की पाजेब बन के चमकता ही नहीं !


मंदिरों के दरवाज़े भी रातों को बंद हो जाते हैं,
दिन ढलने बाद वो भी फर्याद सुनता नहीं !!

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