इतफ़ाकन मुलाक़ातें

यूं कभी मोहब्बत नहीं थी उससे मगर उसने हमेशा यही चाहा था के गिल्लू का उसके प्रति मोह भंग हो जाए| वो उससे मिलने के बाद आज अपने संसार लौट तो आई, पर आज कुछ भी अपना नहीं लग रहा था| लग रहा था के कहीं ना कहीं उसका कुछ हिस्सा गिल्लू के पास छूट गया हो| आज इतने सालों बाद!

वो आज भी वैसा ही दुबला सा आवारा लड़का मालूम होता था| उसके चेहरे पे जो मुस्कान आ टिकी थी, वो वैसी मुस्कान नहीं थी जिसके पीछे गम छुपा होता है| फिर भी रह रह कर वो बेचैन हो रही थी के गिल्लू आज कल खुश है या नहीं| कॉलेज के बाद उसको कई बार ये भी लगा के शायद वो भी उससे प्रेम तो करती थी, मगर किसी वजह से वो हां नहीं कर पाई| और ना करने का तो उसने मौका ही नहीं दिया कभी| शायद उसने अपनी ज़िंदगी के हमसफ़र की एक संपूरण प्रतिमा पहेले से बना रखी थी, जिससे गिल्लू बिल्कुल भी मेल नहीं ख़ाता था|

इतफ़ाकन हुई मुलाक़ातें हमेशा वो सब याद करवा जाती हैं जो हम यादों के ढेर से भी बाहर निकाल के रख छोड़ते हैं!

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