मुखोटा

जहाँ के सामने, अरमान कहाँ करवट ले पाते हैं
भूल चूक होने का डर ये एक दूसरे के सामने ही पाते हैं !
कैसे जाने के इन दोनो के मिज़ाज़, कुछ और हो जाते हैं,
जब एक दूसरे को सामने पाते हैं !
दुनिया का सामने तो इक मुखोटा ओढ़े रहते हैं,
एक दूसरे को गैर का चेहरा दिखाते झिझक सी दरमियाँ पाते हैं !

मुस्कुराहट

चंचल सी धूप सुबह की ढलती है ज़हन में
जब शाम की धुंध के साथ
बासी पड़ जाती हैं सुबह की नज़में
आहिस्ता से करवटें लेते हैं कुछ तसव्वुर
रात के
अलसाए से कोहरे में
और मंद-मंद रोते रहते हैं सूखे पत्ते
जैसे कोई नयी धुन लिख रहे हों
बाँध लेता है समय जीवन को आलिंगन में
ऐसे जैसे थम गई हो दूर कहीं नदिया की धार !
फिर जब अरमान लेते हैं अंगड़ाईआं
सुबह की साँस के धुएँ के साथ
तो सुलगती हैं कुछ यादें
आरज़ू के तंदूर में
जैसे कोई सेंक रहा हो आँसू अपने
के तपा के शायद मुस्कुराहट में बदल जाएं !
और फिर आफताब जब जलता है
तो बुझ जाती है वो नज़म और
बस इक तपश सी बाकी रह जाती है !

शायद कोई मुस्कुराने ही वाला था !!

घर

रोज़ आफताब की पहली किरण के साथ
मैं खिड़कियों से पर्दे हटा हटा देखती हूँ
के कोई किरण होगी जो
तुम्हारा अक्स बन के उतरेगी घर में !
यह घर अधूरा है तुम्हारे बिना !
तुम गये हो सरहद पे किसी ओर का घर बचाने !!
किसी ओर का घर उजाड़ने...

गुल्मोहर

ना-उम्मीदी सही, ख्वाब रु-ब-रू होंगे ज़रूर,
चाँद हो ना हो, झील के पानी रोशन होंगे ज़रूर !
कोई रोएगा यूँ तो, हँसेगे बहुत आज,
झड़ेंगे गुलाब तो गुल्मोहर भी खिलेंगे बहुत आज !

संभल संभाल

संभल के चलिए हज़ूर !
आप फिस्सले तो हम संभाल लेंगे !
गर हम फिस्सले तो फिर संभल ना पाईएगा !!

वो मैं, जो तेरी थी

वो मेरी निगाह की बेशर्मी, जो झुकती नहीं,
के कोई निगाह दिल्लगी अब कर पाती नहीं !
वो मेरी कमर की गरज, जो छटपटाती नहीं,
के कोई हथेलियां शरारत अब कर पाती नहीं !
वो मेरी ज़ुल्फों की ज़िद्द, जो फ़िज़ा में उड़ पाती नहीं,
के कोई उंगलियाँ झोंके सी इनमे सरसराती नहीं !
वो मेरे काँधे की रुखाई, जो चुन्नी फिस्सल पाती नहीं,
के कोई माथे से पसीने की बूँदें टपक पाती नहीं !
वो मेरी गर्दन का नखरा, जो सिरहन सी दौड़ती नहीं,
के कोई साँसों की गर्मी अब ज़बरदस्ती कर पाती नहीं
वो मेरे माथे की लकीरों की अकड़, जो सीधी होती नहीं,
के कोई होंठों की इन सिलवटों से कशमकश हो पाती नहीं !

बता ऐसा क्या राबता था तेरे साथ,
जो अब किसी की ज़रूरत होती नहीं !!

ਵਰਕੇ

ਵਰਕੇ ਫਾੜ ਫਾੜ ਸੁੱਟੇ ਯਾਦਾਂ ਦੇ,
ਏ ਸੱਧਰਾਂ ਦੇ ਵੈਨ ਗਿੱਧਾਂ ਵਾਂਗ ਮੇਰਾ ਮਾਸ ਟੁੱਕ ਗਏ !
ਲੋਕੀਂ ਔਣ ਡਹੇ ਦੁਖ ਵੰਡਣ ਮਾਰੇ,
ਹੰਝੂ ਅਣਖ ਦੇ ਮਾਰੇ ਬਣ ਬੈਠੇ ਮੇਹਮਾਨ, ਫੇਰਾ ਪੌਣੋ ਵੀ ਰੁੱਕ ਗਏ !
ਕੋਰੇ ਕਾਗਜ਼ ਤੇ ਸਿਰ੍ਫ ਸਿਰਨਾਵਾਂ ਬਣ ਕੇ ਰਹ ਗਿਆ,
ਜ਼ਹਨ ਚ ਸਾਹ ਬਾਕੀ ਨੇ, ਪਰ ਸ਼ਬਦ ਮੁੱਕ ਗਏ !
ਮੇਰੇ ਗੀਤਾਂ ਦਾ ਵਾਰਿਸ ਕੋਈ ਨੀ,
ਜਿਹੜੇ ਲਾਗੇ ਸੀ ਓ ਬਣ ਧੂਣੀ ਫੁੱਕ ਗਏ !

ਕਹੇ ਸੁੱਖੀ ਹਾਏ ਯਾਰ ਨਿਮਾਣਾ,
ਜਿਨਾਂ ਤੇ ਮੁਹੱਬਤਾਂ ਵਾਲੇ ਫਲ ਲਗਦੇ ਨੀ ਓਹੀ ਟਾਹਣ ਸੁੱਕ ਗਏ !!

माझी

(वो शख्स जिसका किनारा नहीं होता, जो नदी की तरह निरंतर है)

16 में से 16 आने आंसुओं का बोझ जब मेरे हिस्से दे दिया,
तो मैंने भी रोना सीख लिया !
के कश्ती ने जब लहरों के मुक़ाबिल होना छोड़ दिया,
तो माझी ने तैरना सीख लिया !

उधारी

किष्तों में भरपाई मुश्किल है,
कभी वस्सल का सबब बने तो अस्सल ले जाना !
रोज़ की सिसकियों से बेहतर है,
एक दिन अपने से दूर और खुद से मरासिम कर जाना !!
यह आँसुओं की उधारी यूँ तो बड़ी महँगी है !!!

धुँधला अक्स


रात के अंधेरे में भी,
जब एक हल्की सी लौ बाकी रहती है,
तुम थोड़ी “chubby” सी क्यों ना हो,
उस अध-जली रोशनी में,
खिड़की के काँच के पीछे,
तुम हसीं लगती हो !
तुम्हारा इक धुँधला सा अक्स ही बन पाता है,
मेरे ज़हन में,
जब बादल छुपा लेते हैं, आधा अक्स चाँद का,
तो मुझे तुम हसीं लगती हो !

फिर उतर जाती है धीरे धीरे तो मुझे लगता है,
के शायद वो पागलपन था जो नशे ने किया था !
और मैं सोच में पड़ जाता हूँ के “सच्ची मोहब्बत” किसे कहते हैं?
शायद शराब में अब वो कैफियत नहीं बची जो मुझे गुमराह कर सके !!

अतीत

लिखना चाहती हूँ अपने आँसुओ से तेरे आँसुओ तक का,
लिख देती हूँ अपने आँसुओ से तेरी हँसी तक का सफ़र !
ये रास्ते भी बड़े बेवफा से होते हैं,
एक बार छूट जाएं तो फिर नये ढूँडने पड़ते हैं !
और तुम सोचते हो के मैं अतीत में जी रही थी !!

तेरे आँसू

यह आँसू बहते हैं इस उम्मीद में
के एक दिन तेरे आँसुओं का सबब बनेंगे !
दरियाओं को बहा देता है सावन
समंदर में बाढ़ ला दे कोई ऐसी शिद्दत कहाँ !!

आख़िरी बार

समय भी ताक में रहता है बीतने की,
जो फ़रवरी के महीने दिन कम मिलते हैं !
इक जुदाई ही दायम है मेरे नसीब में,
वरना महीने तो और भी आएँगे !

यह मोहब्बत चीज़ ही ऐसी है,
आख़िरी बार होती है, पहली बार नहीं !!