रंग

काली सलेट पर चाक से लिखूं
या कोरे काग़ज़ पे काली स्याही से !
लफ़्ज़ों में ज़िंदगी भर देने का हुनर सीख रहा हूं अभी तो !

मेरी लिखतों में रंग मत ढूंडना !!

राख

अकसर वो भीगी शामों की बालकोनी में,
सिगरेट सुलगा के खुद को जलाता रहता !
और खोई सी रातों के घाट पर,
अपनी अस्थिआं ले के बह जाता उसी ख्वाब में !!

उसके दिन, राख में से ज़िंदा होने की कोशिश भर थे !!

ठिकाना