राख

अकसर वो भीगी शामों की बालकोनी में,
सिगरेट सुलगा के खुद को जलाता रहता !
और खोई सी रातों के घाट पर,
अपनी अस्थिआं ले के बह जाता उसी ख्वाब में !!

उसके दिन, राख में से ज़िंदा होने की कोशिश भर थे !!

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