वो रात

रोशनीओं से अलहदा चांद भी भटका था,
कभी बादलों के पीछे,
चेहरा छुपाए !
उस लम्हे में कुछ अधूरा नहीं था,
मैं और तुम पूरे इक दूसरे से !!

मोम

ये दिल आईने सा है, इसे मोम बना लेना !
फिर बस पिघलेगा मगर टूटेगा नहीं
बाहर की परछाईओं को अंदर की तपिश से जला देना !!

आस

मोहब्बत के पेड़ ऊंचे होते हैं !
उनकी शाखाएँ तो नहीं होतीं,
मगर जड़ें दूर दूर तक फैलती हैं, ज़िंदगी में धंसी !
बहरहाल, ज़िंदगी की कहानी इस आस में के,
कभी उस पेड़ से गुल्मोहर के फूल झड़ेंगे !!

सुबह

वो हर बार सपने पे उंगली रख देती थी,
मैं हर बार करवट ले लेता था !
तब जगा जाता था,
सुनहरी रोटी पे चांदी सा मख्खन,
या फिर लोहे के चमच में चांदी सी खीर !

अब बस ख्वाबों में चुभ जाती है सुबह !!

नन्हीं सी बातें

तेरा मेरे बालों में गालों को रगड़ जाना,
या मेरा कंधे पे हाथ रखते रखते गालों पे हाथ रख जाना !
तेरा चलते चलते कलाई से कलाई सरका जाना,
या फिर मेरा गले लगते लगते बाहों में लिपट जाना ! 

जो सब नन्हीं सी बातें होतीं हैं, वो सब मोहब्बत होतीं हैं !!

गुच्छा

वो गुल्मोहर के पेड़ के नीचे ढान्स लगाए मिली थी,
जैसे उस गुल्मोहर का ही कोई गुच्छा ज़मीं पे गिरा हो !
और वैसी की वैसी ही दूर छूट गयी !
फिर उसको किसी दिन देखा,
उसकी नयी ज़िंदगी के पहचान-पत्र के साथ !


लगा के सब फूल सूख गये,
मगर गुच्छा अभी भी बंधा हो किसी डोरी से !!

उंगलियां

बहुत बार गुम होने के बाद,
मैं पहुंचा हूं यहां तलक !
उंगलियां कब पकड़ी थीं, याद नहीं,
कदम सब अपने ही हैं,
देखते हैं, जाऊंगा कहां तलक !!

राह

जैसे चोटिओं पे बर्फ छटपटाती है समंदर में घुल जाने को,
मेरे होंठ भी तरसते हैं तेरा माथा चूमने को !
फरक इतना बस,
नदीओं के राह बड़े लंबे होते हैं और अपनी मोहब्बत के है ही नहीं !!

अमीरी

वो जाती हुई रो रही थी,
मुझे समझ नहीं आया मेरे लिए या मेरे हिस्से का !
मोहब्बत की परिभाषाएं अगर पेड़ों पे टॅंगी मिल जातीं तो,
सब अमीर ना हो जाते !! 


बहरहाल मुफ़लिसी ही मेरी मिल्कियत है...

खुशी

तू मुझे जान कहे और खुशी मेरी नाक पे फड़फड़ाती रहे !
मैं चूम लूं माथा तेरा और तू दिन भर शरमाती रहे !! 



चली आ कहीं से तो, के ये जो सब पूरा है, तुझ बिन अधूरा हो रह जाए...
कहीं से तो...

इल्ज़ाम

अपने नाम में से मेरा तखलुस हटा लेना,
चाँद पे इल्ज़ाम लगते हैं सितारों से उधारी लेने के !
चांदनी बिखरी है वहां से वहां तलक,
सितारों की छाओं है जहां से जहां तलक !!

किस्से

भूलना मत उसको, कितना भी हरजाई हो !
किस्से नहीं बनते मोहब्बतों के,
गर थोड़ी सी बेवफ़ाई ना हो !!

उलझनें

वो कोरे काग़ज़ों पे लिखता था,
और सफेद चादरों से उलझता था !
वो सिलवटों में उसका लिखा पढ़ती है,
और स्याहीओं से सब सुलझाती है !!

चिंगारी

मोम तो सब जलाते हैं, खुद को भी कभी जला कर तो देखो !
इतना मुश्किल है नहीं,
घर की बात ज़रा बाहर वालों को बता कर तो देखो !!

किनारे

मेरे इश्क़ के किनारे नहीं, बस रवानी है,
मेरे दिल को निचोड़ा बहुत, कभी अपने दिल को डूबा भी जाना !
नियत की बात नहीं, तकदीरों में बेईमानी है,
बहुत से क़र्ज़ लिए हैं तुमने, कुछ क़र्ज़ चुका भी जाना !

ताना-बाना

ये जो बाहर आतिशबाज़ी हो रही है,
या तो कोई चल बसा है या कोई ज़िंदगी सांस लेने लगी है !
मैने नहा धो के आज कपड़े सब नये पहने हैं,
मगर ज़िंदगी फिर पुराने धागों से ताना-बाना बुनने लगी है !