ਰਾਵੀ ਤੇ ਚਨਾਬ ਦੀ ਯਾਰੀ

ਮੈਂ ਸਵੇਰ ਦੀ ਠੰਡੀ ਤਰੇਲ ਤੇ ਤੁੰ ਅੱਤ ਦੀ ਸਰਦੀ ਚ ਕੋਸੀ ਕੋਸੀ ਧੁੱਪ !
ਤੁੰ ਹਨੇਰਿਆਂ ਚ ਪੱਤੇਆਂ ਦੀ ਖੜਕ ਤੇ ਮੈਂ ਗੁਮ੍ਮ ਚ ਧਰਤੀ ਦੀ ਚੁੱਪ !
ਤੂ ਜੇਠ ਦੀ ਤੱਤੀ ਵਾ ਚ ਘੜੇ ਦਾ ਪਾਣੀ, ਮੈਂ ਕੜਕੇ ਦੀ ਧੁੰਦ ਚ ਚਾਹ ਕਰਾਰੀ !

ਆਪਾਂ ਵਗਦੇ ਰਹੀਏ ਬਣ ਧਾਰਾਂ, ਜਿਵੇਂ ਰਾਵੀ ਤੇ ਚਨਾਬ ਦੀ ਯਾਰੀ !!

इक रात

रात पिघली चाँद की कटोरी में !
सितारों ने ली करवटें हवाओं की चादर तले !
घड़ी की सुईओं ने रिड़का लम्हों को !
जुगनूओं ने अंगीठी जलाई पानिओं में !

फिर इक रात रोज़ की तरह पूरी हो गयी !

फिर इक रोज़, मैं पूरा का पूरा, अधूरा रह गया !!

हो जाने का क़र्ज़


लिफाफे में भर के जो खामोशियाँ भेजी थीं,
एक रुपए के सिक्के के साथ !
वापिस आ जाती हैं अक्सर मेरी पेंसिल की नोंक पर !

मैं उसका हो जाने का क़र्ज़ उतार रहा हूं !!

पहुंच

कभी कभी पहुंचने के लिए जरूरी नहीं के चला जाए...

कैलेंडर

मेरे हाथों से लकीरें निकाल,
पैरों में थकान डाल गया है कोई !
वक़्त ऐसे कटता है मेरा,
जैसे घड़ी से सूइयां निकाल गया है कोई !

मेरे दिन-रात में अब भी तुम मौजूद हो
पर जैसे कैलेंडर से तारीखें निकाल ले गया है कोई !!

टीस

बाँधे हुए धागे खुद ब खुद खुलने लगे हैं,
कुछ टीस सी है जैसे कच्ची खराश से किसी ने उधेड़ी दी हो सिलाई !

मुसाफिर

आज फिर इक दिन प्लॅटफॉर्म से निकल गया,
जाने आज कौन सा मुसाफिर उतरा !!