इक रात

रात पिघली चाँद की कटोरी में !
सितारों ने ली करवटें हवाओं की चादर तले !
घड़ी की सुईओं ने रिड़का लम्हों को !
जुगनूओं ने अंगीठी जलाई पानिओं में !

फिर इक रात रोज़ की तरह पूरी हो गयी !

फिर इक रोज़, मैं पूरा का पूरा, अधूरा रह गया !!

0 comments: