हिमाकत

समंदर को ज़रा पलक झपकने तो दो,
मैं मीठी नदीओं को खारी लहरों से निकाल लूंगा !
अभी तो एक रंग-ए-मंज़र देखा है आपने,
ज़रा हमें जानिए तो सही, मैं आपकी रूहों को अपना बना लूंगा !

प्रेम पत्र

दिल प्रेम-पत्र को किराए का मकान बना रहता है,
उसी पुरानी संदूकची में, जिसका ताला गुम हो गया था !
हर शाम यादें मकान-मालिक की हक़ारत नाक पे ले,
मेरा दरवाज़ा खटखटाती हैं !
मैं रोज़ पायल की एक कढ़ी बतौर किराया गिरवी रख देती हूँ !
रोज़ दो आहें बतौर सूद भी ले जाती हैं, यादें ! ज़बरदस्ती !

काश! के उस संदूकची का ताला नहीं बलकि चाबी गुम हो जाती,
या वो आख़िरी नहीं पहला प्रेम-पत्र होता !!

नया इज़हार

कितना आसां होता है किसी का किसी को ठुकरा देना,
नाहक ही वो रोज़ लड़ता है नये इज़हार से !
के मेरा हक़ सिर्फ़ अपने जुनून पे है, सुकून पे नहीं,
सुकून मिलेगा जब तो मुक़द्दर के अख्तियार से !!

आवारगी

"रुक जा, यार" बस इतनी सी दरखास्त कर पाया था तब !
अब भटकता रहता है दिल,
मंज़िलों और राहों में फरक जाने बिना !
आवारगी बड़ी शानदार चीज़ है !!

प्यास

सोचता हूं के आग को प्यास लग जाए तो,
कौन सा पानी अपनी सिफ्त बदल लेता है !
बात अलग है के पानी प्यास नहीं आग के वजूद को मिटा देता है !
मगर फिर प्यास भी कौन सा किसी को पूछ के लगती है !

कांच के इक ग्लास में रोज़ इकठी करता हूं,
1-3 भाग में आग और पानी,
और बुझा लेता हूं प्यास जो लगी नहीं थी,
लगाई थी, किसी आग के वजूद को मिटाने की खातिर !!