कितना आसां होता है किसी का किसी को ठुकरा देना,
नाहक ही वो रोज़ लड़ता है नये इज़हार से !
के मेरा हक़ सिर्फ़ अपने जुनून पे है, सुकून पे नहीं,
सुकून मिलेगा जब तो मुक़द्दर के अख्तियार से !!
नाहक ही वो रोज़ लड़ता है नये इज़हार से !
के मेरा हक़ सिर्फ़ अपने जुनून पे है, सुकून पे नहीं,
सुकून मिलेगा जब तो मुक़द्दर के अख्तियार से !!
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