सोचता हूं के आग को प्यास लग जाए तो,
कौन सा पानी अपनी सिफ्त बदल लेता है !
बात अलग है के पानी प्यास नहीं आग के वजूद को मिटा देता है !
मगर फिर प्यास भी कौन सा किसी को पूछ के लगती है !
कांच के इक ग्लास में रोज़ इकठी करता हूं,
1-3 भाग में आग और पानी,
और बुझा लेता हूं प्यास जो लगी नहीं थी,
लगाई थी, किसी आग के वजूद को मिटाने की खातिर !!
कौन सा पानी अपनी सिफ्त बदल लेता है !
बात अलग है के पानी प्यास नहीं आग के वजूद को मिटा देता है !
मगर फिर प्यास भी कौन सा किसी को पूछ के लगती है !
कांच के इक ग्लास में रोज़ इकठी करता हूं,
1-3 भाग में आग और पानी,
और बुझा लेता हूं प्यास जो लगी नहीं थी,
लगाई थी, किसी आग के वजूद को मिटाने की खातिर !!
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