रोशनीओं से अलहदा चांद भी भटका था,
कभी बादलों के पीछे,
चेहरा छुपाए !
उस लम्हे में कुछ अधूरा नहीं था,
मैं और तुम पूरे इक दूसरे से !!
कभी बादलों के पीछे,
चेहरा छुपाए !
उस लम्हे में कुछ अधूरा नहीं था,
मैं और तुम पूरे इक दूसरे से !!
the pursuit of reason... the fight with self...
Posted by Sukesh Kumar Wednesday, 28 October 2015 at 21:40
Labels: मेरा जीवन-मेरी कविता (My Life-My Verse)
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