वो हर बार सपने पे उंगली रख देती थी,
मैं हर बार करवट ले लेता था !
तब जगा जाता था,
सुनहरी रोटी पे चांदी सा मख्खन,
या फिर लोहे के चमच में चांदी सी खीर !
अब बस ख्वाबों में चुभ जाती है सुबह !!
मैं हर बार करवट ले लेता था !
तब जगा जाता था,
सुनहरी रोटी पे चांदी सा मख्खन,
या फिर लोहे के चमच में चांदी सी खीर !
अब बस ख्वाबों में चुभ जाती है सुबह !!
0 comments:
Post a Comment