भीगी तो मेरी रूह है पर मैं जिस्म से ज़हर निचोड़ता हूं !
मैं ऐसा ही हूं, पता नहीं क्यों,
जब अंदर देखना होता है तो खिड़की से बाहर देखता हूं !!
मैं ऐसा ही हूं, पता नहीं क्यों,
जब अंदर देखना होता है तो खिड़की से बाहर देखता हूं !!
the pursuit of reason... the fight with self...
Posted by Sukesh Kumar Sunday, 25 December 2016 at 19:42
Labels: मेरा जीवन-मेरी कविता (My Life-My Verse)
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