सुन, ओ यारा

गाल पे रखा हुआ हाथ
जैसे
रेगिस्तान की रेत का टीला,
और चड़ता हुआ दरिआ !

ज़हन के कोने में इक बात
जैसे
राख के नीचे सुलगता कोयला,
और भीगे गले से फूँकी हवा !

टकटकी लगाए आंखें
जैसे
इंतज़ार दुल्हन का,
घूंघट आड़े तमन्नाओं के !

सुन, ओ यारा !
सुन, ओ पीची !

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