जो रह गया

खूँटी पे अपना हेअर-बैंड टाँग गयी...
तीखी सी हवा में झनक पायल की आवाज़ छोड़ गयी...
डायरी का सफ़ा जिसमे बुकमार्क छोड़ गयी...
शीशे पे टेस्ट की हुई लिपस्टिक की लकीर छोड़ गयी...
चाए की प्याली में ठंडी फूंक छोड़ गयी...
मेरे बिस्तर की सिलवटों में अपनी करवटें छोड़ गयी...

मैने सबके साथ जीना सीख लिया !

बस मेरे काँधे पे इक बाल छोड़ गयी थीं,
मेरी रातों को तो बस वही चुभता रहा है !

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