एक बार ज़िंदगी ने उसके दरवाज़े पे खट-खटाया भी था,
पर फिर कदम पीछे हटा लिए थे, उसी आवेग से जैसे बढ़ाए थे !
पर फिर कदम पीछे हटा लिए थे, उसी आवेग से जैसे बढ़ाए थे !
the pursuit of reason... the fight with self...
Posted by Sukesh Kumar Wednesday, 10 February 2016 at 12:05
Labels: मेरा जीवन-मेरी कविता (My Life-My Verse)
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