कितने ख्वाब उधेड़े हैं मैने, दो चार सिक्कों के बदले,
और ख्वाब सिलने वाले उस दर्जी ने शहर बदल लिया !
यूं भी कभी कभी देर आना दरुस्सत आना तो नहीं होता !
और ख्वाब सिलने वाले उस दर्जी ने शहर बदल लिया !
यूं भी कभी कभी देर आना दरुस्सत आना तो नहीं होता !
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