मैं किनारों में बंधा दरिया हूं,
मुझे बे-किनारा कैसे करोगे !
तुम समंदर हो, मसिहा नहीं,
तुम मुझे आज़ाद कैसे करोगे !!
मुझे बे-किनारा कैसे करोगे !
तुम समंदर हो, मसिहा नहीं,
तुम मुझे आज़ाद कैसे करोगे !!
the pursuit of reason... the fight with self...
Posted by Sukesh Kumar Sunday, 7 February 2016 at 22:22
Labels: मेरा जीवन-मेरी कविता (My Life-My Verse)
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