बचपन में मैं अक्सर सोचता था,
के हम बारिश के वक़्त ही काग़ज़ की कश्ती क्यों बनाते हैं,
या खाली पीरियड में ही काग़ज़ के जहाज़ क्यों बनाते हैं,
पर फिर उम्र के साथ साथ ये मान लिया के,
हर चीज़ का अपना वक़्त और जगह मुकरर होता है !
जैसे बिरहन का...
मुझे लगता है स्टेशन बिरहनों के लिए ही बनाई जगह है,
और गाड़ी का छूटना वो समय !
मैं प्लॅटफॉर्म पे खड़ा,
तकता गुज़रती खिड़कीों को,
और हर खिड़की में से तुम्हारा झँकता चेहरा !!
के हम बारिश के वक़्त ही काग़ज़ की कश्ती क्यों बनाते हैं,
या खाली पीरियड में ही काग़ज़ के जहाज़ क्यों बनाते हैं,
पर फिर उम्र के साथ साथ ये मान लिया के,
हर चीज़ का अपना वक़्त और जगह मुकरर होता है !
जैसे बिरहन का...
मुझे लगता है स्टेशन बिरहनों के लिए ही बनाई जगह है,
और गाड़ी का छूटना वो समय !
मैं प्लॅटफॉर्म पे खड़ा,
तकता गुज़रती खिड़कीों को,
और हर खिड़की में से तुम्हारा झँकता चेहरा !!
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