कितना आसां हो

कितना आसां हो जाता सब गर तुमने पीछे पलट के देखा होता !
कितना आसां हो जाता सब गर तुमने बाहों में भर लिया होता !

मुश्किल बस लम्हे होते हैं, ज़िंदगियाँ आसां,
मगर खो जाती हैं ज़िंदगियाँ लम्हों को आसां करने की दौड़ में !!

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