तू चांद जैसी मत बनना !
चांद तो सजता है लाखों के लिए,
तू कभी मत सजना किसी ओर के लिए !
मोहब्बत में मुझे बस ये इक इख्तिआर दे जाना !!
चांद तो सजता है लाखों के लिए,
तू कभी मत सजना किसी ओर के लिए !
मोहब्बत में मुझे बस ये इक इख्तिआर दे जाना !!
the pursuit of reason... the fight with self...
Posted by Sukesh Kumar Thursday, 14 January 2016 at 18:25
Labels: मेरा जीवन-मेरी कविता (My Life-My Verse)
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