खामोशियाँ ले के चलते हैं, सन्नाटे नहीं,
चल सांझ ले के चलते हैं, अंधेरे नहीं !
मां की बनाई कल की सुखी रोटी पे नमक लगा के,
सवेरों के आगे आगे चलते हैं !
चल धूप पकड़ते हैं, परछाईंआं नहीं !
हथेलिओं से तकदीरें छीन कर,
दरियाओं जैसे टेढ़े मेढ़े सही, पर राह बनाते हैं !
चल लहरों की तरह टूटते हैं, पर बिखरते नहीं !
धुन्ध को चाँदनी के सहारे लाँघ लेंगे,
मजबूरिओं से दुआओं के साथ लड़ते हैं !
चल दिए हवाओं से जलाते हैं, माचिसों से नहीं !
चल सांझ ले के चलते हैं, अंधेरे नहीं !
चल सांझ ले के चलते हैं, अंधेरे नहीं !
मां की बनाई कल की सुखी रोटी पे नमक लगा के,
सवेरों के आगे आगे चलते हैं !
चल धूप पकड़ते हैं, परछाईंआं नहीं !
हथेलिओं से तकदीरें छीन कर,
दरियाओं जैसे टेढ़े मेढ़े सही, पर राह बनाते हैं !
चल लहरों की तरह टूटते हैं, पर बिखरते नहीं !
धुन्ध को चाँदनी के सहारे लाँघ लेंगे,
मजबूरिओं से दुआओं के साथ लड़ते हैं !
चल दिए हवाओं से जलाते हैं, माचिसों से नहीं !
चल सांझ ले के चलते हैं, अंधेरे नहीं !
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