किस्से अधूरे

आज तो समंदर भी बड़ा परेशान है,
उसकी रगों में भी शायद जुदाई वाली कोई नदी बहने लगी है !
बादल खुद बड़ा प्यासा सा है,
वो भी शायद विछोड़े के किसी रेगिस्तान में निचुड़ के आया है !
हवा को आज रेत के दाने भी भारी,
शायद अपने पिआ पहाड़ से लड़ के थकी आई है !

यारा, कुछ ओर हो ना हो,
गुल्मोहर ढूंड लेना बस, इक वो ही तो खिला खिला सा रहता है !

और लिख लेना सब किस्से अधूरे उसकी महकी छाँव में !!

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