चलो तोड़ देते हैं उन आईनों को
जिनमे अक्स देखते हैं हम एक दूसरे का !
के जब तन्हाई का सबब बनेगा,
तो याद आएगी उस ज़माने की,
जब आईनों की ज़रूरत नही पड़ा करती थी !!
तब जब चेहरे ही नहीं, रूहें मिल जाती थी आखों में ही !!
जिनमे अक्स देखते हैं हम एक दूसरे का !
के जब तन्हाई का सबब बनेगा,
तो याद आएगी उस ज़माने की,
जब आईनों की ज़रूरत नही पड़ा करती थी !!
तब जब चेहरे ही नहीं, रूहें मिल जाती थी आखों में ही !!
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