लम्हे

कोशिशें नाकाम हों या लम्हे खाक हों, फरक नहीं,
लड़ते रहे हैं दोनो वक़्त से अब भी !
उसे याद है पहला दिन मुलाकात का,
और मुझे आख़िरी दिन तालुकात का !

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