सीने में तमाशा

एक तो याद है तुम्हारी हर ज़र्रे पर टॅंगी हुई,
और एक सीने में तमाशा, वो अलग !

एक पत्ता गिर पड़ा पेड़ से,
जिसके नीचे मैं खड़ा हूं,
बारिश से बचने के लिए !

सोचने वाली बात है के यूँ ही,
नयी कोपलों वाले छोटे मासूम से पत्ते ही,
शहीद होते हैं तूफान में !

उस असमयक समय तुम याद आ जाती हो मुझे.
के तुम्हारी आँखें भी कितनी मासूम थीं !
झपक जाती थीं, जैसे शाख लचकी हो,
किसी परिंदे के उड़ने पे !

आज कल पता नहीं क्यों,
छतरी के नीचे भी भीग सा जाता हूं !
उस दिन तो तुम्हारे साथ,
बारिश में भी सूखा रह गया था !!

तुम आ जाओ जहां कहीं भी हो,
के तुम दूर हो मगर गैर नहीं !!

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