कहानियाँ भी अजीब होती हैं !
कोई दो पल में सिमट जाती है,
तो कोई दो शब्दों में !
यूँ सदिओं इंतज़ार करते हैं वो पल,
के कोई टेबल-लेम्प में पूरी रात जागेगा !
और शब्द मिलते हैं लाइब्रेरी की अंतिम शेल्फ पे,
कोने वाली किताब के आख़िरी सफे पे, बुकमार्क के पीछे छुपे हुए !
मैं ढूंड रहा हूं उन दो शब्दों के आख़िरी अक्षर को !
कोई चुरा के ले गया है उसको,
अपनी डायरी की कहानी पूरी करने के लिए !
आज भी ऐसी डायरियां रद्दी के भाव बिका करती हैं !!
और राज़ छुपे रह जाते हैं कबाड़ी की दुकान में !!
कोई दो पल में सिमट जाती है,
तो कोई दो शब्दों में !
यूँ सदिओं इंतज़ार करते हैं वो पल,
के कोई टेबल-लेम्प में पूरी रात जागेगा !
और शब्द मिलते हैं लाइब्रेरी की अंतिम शेल्फ पे,
कोने वाली किताब के आख़िरी सफे पे, बुकमार्क के पीछे छुपे हुए !
मैं ढूंड रहा हूं उन दो शब्दों के आख़िरी अक्षर को !
कोई चुरा के ले गया है उसको,
अपनी डायरी की कहानी पूरी करने के लिए !
आज भी ऐसी डायरियां रद्दी के भाव बिका करती हैं !!
और राज़ छुपे रह जाते हैं कबाड़ी की दुकान में !!
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