और यूँ ही कभी भूल जाते थे दोनो खुद को
जब हो जाते थे स्वार्थी !
कई कई सालों तक
गूंगी उंगलिओं से टटोलते रहते वो शब्द
और पलकें करती रहती ज़ुबां की रीस
अब तो
मैं उंगली घुमा देता हूँ शराब के ग्लास में
और पलकें पोंछ देती हैं ज़ख़्मों की टीस
मैं चुप हूँ के कहने का बीड़ा तुम्हारा है इस बार !!
जब हो जाते थे स्वार्थी !
कई कई सालों तक
गूंगी उंगलिओं से टटोलते रहते वो शब्द
और पलकें करती रहती ज़ुबां की रीस
अब तो
मैं उंगली घुमा देता हूँ शराब के ग्लास में
और पलकें पोंछ देती हैं ज़ख़्मों की टीस
मैं चुप हूँ के कहने का बीड़ा तुम्हारा है इस बार !!
0 comments:
Post a Comment