आधी मजबूरी

रो तो दूं मैं किसी रोज़
मगर कहाँ है तस्सली-बख़्श वो अहद !
के तुम भी बहा लोगे दो बूंद आंसू किसी दफ़ा
और बांट लोगे आधे सितम !

के ये दूरी बनाई हो भले मैने पूरी
पर मजबूरी तो आधी तुम्हारी है !!

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