एक दिन था बांवरा सा
इक रात थी बौराई सी !
दिन फिसलता रहा रात पे
रात घुलती रही दिन में !
हर दिन चाँद निकलता था
हर रात सूरज जगता था !
दोनो बाँटते फिर रहे हैं अब समों को
यूं कैसे कहां रखे इतने लम्हों के गमों को !!
इक रात थी बौराई सी !
दिन फिसलता रहा रात पे
रात घुलती रही दिन में !
हर दिन चाँद निकलता था
हर रात सूरज जगता था !
दोनो बाँटते फिर रहे हैं अब समों को
यूं कैसे कहां रखे इतने लम्हों के गमों को !!
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