तुम्हारी कहानी

कहानिओं में घर बसा रहते हैं कुछ ख्याल जो अपने ही घर से निकल नहीं पाते | अंदर से कुण्डी लगा बैठे थे इस डर से के कोई चुरा ले जाएगा इन्हें, अब फँसे हैं खुद की ही बनाई क़ैद में| ये ख्याल पैदा हुए हैं यादों की कोख से इन्हें किसी प्रवरिश की ज़रूरत ही नहीं | डरे सहमे ख्याल बुनते भी हैं, उधेड़ते भी हैं, पर ज़्यादातर उलझे रहते हैं अपनी ही गिरहों में |
तुम भी आओ इस घर में और देखो तुम्हारे कज़रे की धार से भी नुकीले वयंग से काटती हैं यादें और कोई अपनी बाहों के मरहम से ज़ख़्मों को सहलाने वाला भी नहीं आस पास !
नहीं, तुम्हारी कहानी कोई ओर नहीं, मेरे साथ जुड़ी है !!

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