घर घर

भर लेते हैं गैरत मुठ्ठी में
और इकठी कर लेते हैं मुफ़लिसी कुछ जेब में !
के शायद कोई ओर दौलत मिले ना मिले
हम घर घर खेल लेते हैं इसी से !!

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