हिज़र में, बदनसीब की कैफियत क्या है, सुनो
दुआ भी कबूल नहीं होती मज़ारों में !
तालुकात तूने मुझसे तोड़ा, ज़माने से नहीं
क्यों अब तेरी आमद की गुफतगूं भी, नहीं मिलती बाज़ारों में !!
दुआ भी कबूल नहीं होती मज़ारों में !
तालुकात तूने मुझसे तोड़ा, ज़माने से नहीं
क्यों अब तेरी आमद की गुफतगूं भी, नहीं मिलती बाज़ारों में !!
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