चल निचोड़ लेते हैं गीली मिट्टी की खुश्बू,
सूखेगी तो फिर मिलेगी नहीं पहली बारिश, अगले सावन तलक !
मेरे रुखसारों पे भी होती है हर बार,
बारिश, के जैसे पहली बार हुई हो !!
चल निचोड़ लेते हैं वस्सल का रस
मुरझाए तो फिर मिलेंगे नहीं फूल, अगली बहार तलक !
मैने सींची है मोहब्बत की फसलें इस तरह,
बीजाई, के जैसे आख़िरी बार हुई हो !!
सूखेगी तो फिर मिलेगी नहीं पहली बारिश, अगले सावन तलक !
मेरे रुखसारों पे भी होती है हर बार,
बारिश, के जैसे पहली बार हुई हो !!
चल निचोड़ लेते हैं वस्सल का रस
मुरझाए तो फिर मिलेंगे नहीं फूल, अगली बहार तलक !
मैने सींची है मोहब्बत की फसलें इस तरह,
बीजाई, के जैसे आख़िरी बार हुई हो !!
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