"मैं तुम्हे भूल भी जाऊं,
पर कैसे भूलोगे तुम मुझको"
यह कहते हुए तब
उसकी आँखों में आँसू नही बहे थे !
शायद किसी वक़्त बेवक़्त के लिए आखों में छुपा रखे थे !
और अब भूलने की कोशिश में याद आ जाता है बहुत कुछ,
पता नहीं चलता कब उसकी हंसी में मैं रो जाती हूँ !
ये वही झूठा रोना होता है जो मैं सिर्फ़ ,
उसके मनाने के लिए रोती थी !
पर हम दोनो ही जिसे सच मान लेते थे !!
और अब सब झूठ जैसे सच हो रहे हों !!
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