चल अदल-बदल लेते हैं वक़्त की घड़ियां,
और नाप लेते हैं एक-दूसरे के गमों के पैमाने !
ये महखाने के बाहर टॅंगी रात, वो तेरी
जो बिस्तर की सिलवटों में पिसी रात, वो मेरी
इस सिगरेट के छल्लों में उड़ी, वो शाम तेरी
और जो बालकनी की उदास फ़िज़ा में घुली शाम, वो मेरी
पर एक सुबह रख लेते हैं जो हम दोनो की होगी,
और उस सुबह के बाहर तख़्ती लगा देंगे
"Do Not Disturb" की !!
और नाप लेते हैं एक-दूसरे के गमों के पैमाने !
ये महखाने के बाहर टॅंगी रात, वो तेरी
जो बिस्तर की सिलवटों में पिसी रात, वो मेरी
इस सिगरेट के छल्लों में उड़ी, वो शाम तेरी
और जो बालकनी की उदास फ़िज़ा में घुली शाम, वो मेरी
पर एक सुबह रख लेते हैं जो हम दोनो की होगी,
और उस सुबह के बाहर तख़्ती लगा देंगे
"Do Not Disturb" की !!
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