साहिल

There was always something left to move onto...


यादों की परछती अभी ढही नहीं,
पर ढीली शहतीर चर-मरा जाती है नयी हसरतों में!
पन्नो के सिरों से कट जाती हैं उंगलियां,
यूं लाल निशाँ ही रूह डालते हैं स्याह शब्दों में !
बह जाती है आखों तले शाम ढलते ढलते
और वो पन्ना सो जाता है सुबह के इंतज़ारों में !

ओर कुछ नहीं मिलता !
इंतज़ार की हद नहीं होती बस साहिल होते हैं
जहां से टकरा लम्हे मुड़ आते हैं साधारण सी ज़िंदगी में!!

0 comments: