हैरत नहीं,
आवाम-ए-फरेब पे !
के जो दुल्हन विलखती हुई विदा होगी,
अभी उसे लेने को जश्न चला आ रहा है !!
अचंभे में तो हूं मैं,
अपने ही नज़ारा-ए-हाल पे !
के आगे आगे मैं नाच रहा हूँ,
पीछे पीछे मेरा जनाज़ा चला आ रहा है !!
आवाम-ए-फरेब पे !
के जो दुल्हन विलखती हुई विदा होगी,
अभी उसे लेने को जश्न चला आ रहा है !!
अचंभे में तो हूं मैं,
अपने ही नज़ारा-ए-हाल पे !
के आगे आगे मैं नाच रहा हूँ,
पीछे पीछे मेरा जनाज़ा चला आ रहा है !!
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